- संवाददाता, ई-रेडियो इंडिया
मेरठ। गुरुवार को सारथी संस्था के कंकरखेडा अध्य्क्ष प्रथम अग्रवाल ने बताया कि कोरोना का प्रकोप पूरे विश्व में फैला है, कोरोना के वैश्विक महामारी के रूप में फैलने के बाद बार-बार लोगों को हाथ धोने ओर घर वापस आते ही नहाने की सलाह देकर जागरूक किया जा रहा है। 20 सेकंंड तक हाथ धोने के लिए प्रेरित किया गया है।
यह एक बहुत अच्छी पहल है, लेकिन इससे पानी भारी मात्रा में बर्बाद हो रहा है, जिसकी ओर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है। भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसके साथ ही हम एक चीज भूल रहे हैं कि पूरी दुनिया पेय जल संकट से भी जूझ रही है।
आने वाला समय देश के लिए बहुत संकट भरा होगा, इसकी भयाभयता का अंदाजा लगाया जा सकता है इसलिए समय आ गया है कि पानी की इस गंभीर समस्या को देखते हुए, मुश्किल हालात में कोराना से भी लड़ना है और पानी भी बचाना है। कहीं ऐसा न हो कि हम पानी यूं ही बर्बाद कर दें और फिर भविष्य में पानी के लिए तरसें। एक मुसीबत से छुटकारे के लिए किसी दूसरी मुसीबत को ना बुला लें, इसलिए हाथ तो धोएं, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि पानी भी बर्बाद नहीं हो।यह भी ध्यान रखें कि आने वाले महीने गर्मियों के हैं, जिसमें पानी की किल्लत और बढ़ने वाली है।
कोरोना से बचाव का सबसे आसान तरीका यह बताया जा रहा है कि दिन में कई बार हाथ को साबुन से करीब 20 सेकंंड तक रगड़-रगड़ कर धोएं और हो सके तो बाहर से आने के बाद तुरंत ही नहा लेना चाहिए। यह बहुत ही बेहतर तरीका है, कोरोना से बचने का, लेकिन अक्सर जब हाथ धोने के लिए नल खोल लेते हैं, उसके बाद उसे बंद करना भूल जाते हैं और क्योंकि सारा का सारा ध्यान हाथ रगड़ने और जैसे बताया गया है, उसी तरह से रगड़ने में चला जाता है।जब तक होश संभालते हैं, तब तक काफी सारा पानी बह चुका होता है। इस तरह से रोजाना भारत में लाखों गैलन पानी नालियों में बह रहा है। लोग लॉक डाउन के दौरान ज्यादा पानी का उपयोग कर रहे हैं।
देश के कई शहर आज भी पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं और कई शहरों में संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश में नदियां, झील, जंगल, जल निकाय आदि सूखने के कगार पर हैं। अक्सर हम देखते हैं कि मानसून और उसके बाद बरसने वाला पानी, नदियों और नालों के माध्यम से बह कर समुद्र में गिर जाता है और सारा पानी बेकार हो जाता है। हमें समय रहते जागना होगा और बारिश के पानी के संरक्षण पर जोर देना होगा ताकि बेकार जाने वाले पानी को बचाकर, भू-जल पर हम निर्भर कम हों।
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