'No candle looses its light while lighting up another candle'So Never stop to helping Peoples in your life.

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Feb 6, 2010

=> "पालनकर्ता की अनदेखी"

                    "तुझे सूरज कहूं या चंदा तुझे दीप कहूं या तारा
                               मेरा नाम करेगा रौशन जग में मेरा राज दुलारा"
                                     ये पंक्तियाँ अनायास ही किसी के मन से फूट पड़ती हैं जब उसके घर किसी नए मेहमान यानि नवजात शिशु का आगमन होता है! मन हिलोरे लेता है की खानदान और देश का नाम रौशन करेगा और मन तमाम कसमे और वादें करता है मसलन इसे खूब पढ़ाऊंगा हर संभव मदद करके अच्छा ब्यक्ति बनाऊंगा ताकि आने वाले समय में मै इसी के नाम से जाना जाऊं तथा यह ब्रिद्धावास्था में मेरी मदद करेगा, मेरी अंगुली पकड़कर बुढ़ापे मेरा सहारा बनेगा!
                                     लेकिन लड़का खूब पढलिख कर बड़ा आदमी बनते ही ब्यतीत समय व आशाओ को भुलाकर अपने बूढ़े पालनकर्ता को समय का अभाव बताकर नजरंदाज़ करने की भयानक भूल करता है! बुजुर्ग माँ-बाप सहारे के नाम पर प्रताड़ना एवं दुर्भाव का तानाबाना सहते है,इनके बोलने पर प्रतिबन्ध एवं निजी जीवन में  दखल न करने की धमकी दी जाती है! इस प्रकार ये ब्रिद्ध नायक मानसिक रोग एवं कुंठा की मार झेलते हैं और बंधनयुक्त  जिंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं! आज के दौर में ये समाश्या आम होती जा रही है जो आने वाले दिनों में सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है!

                                    बहुत बड़ी चिंता की बात है की आज मनुष्य अपनी सभ्यताओं का कत्ल करता जा रहा है और बड़े ब्रिद्धों की तरफ पर्दा गिराने की कोशिश कर रहा है!हर इन्सान को जीवन के तीनो पडावो यानि बचपन,जवानी,एवं बुढ़ापे से गुजरना पढ़ेगा और यह भी नहीं भूलना चाहिए की हर कृत्या के पीछे परिणाम जरूर होता है!
                                   प्रताड़ना के चलते भारत ही नहीं बल्कि पूरे बिश्वा में बुजुर्गों की हालत चिंताजनक है, यहाँ एक आंकड़ा देना जरूरी है की "Center for social research " के अनुसार बिश्व में प्रत्येक 10 में 7 ब्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और इश आंकड़े में प्रति वर्ष 2 .6 %  का इजाफा हो रहा है! जबकि भारत में ब्यक्तियों की औसत आयु 65 वर्ष है इसके बावजूद हर 12 भारतियों के पीछे 1 बुजुर्ग पड़ता है! सन 2006 के एक आंकड़े के अनुसार भारत में बुजुर्गो की संख्या 17 करोड़ पार कर गयी है! हैरानी की बात यह है की लगभग 3 -करोड़ बुजुर्ग ऐशे है जिन्हें तुरंत ही चिकित्सा की आवश्यकता है, वहीँ दूसरी तरफ प्रति 1 -हजार पर 89 बुजुर्ग ऐसे हैं जो मानसिक तौर पर अस्वस्थ्य है! ये आंकड़े शाबित करते है की भारत में ही नहीं बल्कि बिश्व में बुजुर्गो की हालत चिंताजनक है!
                                     सबसे उम्रदराज लोंगो की आधी से अधिक आबादी के केंद्र छःप्रमुख देश हैं जिनमे  क्रमशः चीन, भारत, जर्मनी, जापान, अमेरिका व रूष हैं! "United  Nationans  Global  Action on  Ageing -2007 " के एक रिपोर्ट के मुताबित भारत व चीन ऐसे देश हैं जिनमे बुजुर्गों की संख्या 4 .4% हर वर्ष बढ़ रही जबकि विश्व में यह दर 2 .6% वर्ष है!
                                    आयेदिन अखबारों में ऐसी खबरें जरूर मिल जाती है जो बुजुर्गो के निरादर से सम्बंधित होती हैं! हमें खुद को इस बात का जबाब ढूँढना चाहिए की आखिर भारत में खुल रहे ब्रिद्धाश्रमो की आवश्यकता क्यों पड़ी? तो जबाब मिलेगा की इसके जिम्मेदार हम स्वयं है? आज एकल परिवार की प्रार्थमिकता इस परिणाम के लिए जिम्मेदार है! 64 % बुजुर्ग महिला व 46 % बुजुर्ग पुरुष ऐसे है जो पराश्रित है और 10% ऐसे हैं जो असहाय हैं! बुजुर्गावास्था आश्रित होने की अवस्था जरूर है मगर निरादर व अपमान झेलकर मानसिक असंतुलन प्राप्त करने की अवस्था कतई नहीं!
                                    भारत सरकार इन बुजुर्गों की स्थित देखकर नियम बनाने को मजबूर हो गयी और सन 2007  में "माता-पिता एवं बरिष्ठ नागरिक देखरेख व कल्याण बिधेयक" को मंजूरी दी जिसके अनुसार परिवार के सदस्य बड़े बूढों की देखरेख  करने को मजबूर होंगे, ऐसा न करने पर कानूनी कार्यवाई का सामना करना पड़ेगा जिसके तहत 3 महीने की सजा व 5000  रूपये का जुर्माना व दोनों हो सकता है! ऐसे में हम सभी को इन बुजुर्गो के देखरेख का बीड़ा उठाना होगा ताकि भारत की उच्य सामाजिक ब्यवस्था को छति न पहुंचे और अपने माँ-बाप की देख रेख के लिए किसी से बाध्य होने की जरूरत न पड़े!

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