'No candle looses its light while lighting up another candle'So Never stop to helping Peoples in your life.

Post Top Ad

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitYaYpTPVqSRjkHdQQ30vpKI4Tkb2uhaPPpRa2iz3yqOvFNx0PyfRqYxXi_SO2XK0GgZ9EjuSlEcmn4KZBXtuVL_TuVL0Wa8z7eEogoam3byD0li-y-Bwvn9o2NuesTPgZ_jBFWD2k0t4/s1600/banner-twitter.jpg

May 17, 2014

=> दारू चढ़ने के बाद बके जाने वाले विशिष्ट बोल…

  • Suresh Chiplunkar

बात है सन् 1988 की, यानी बीस साल पहले की, जब हमारी इन्दौर में नई-नई नौकरी लगी थी। हम चार रूम पार्टनर थे, चारों टूरिंग जॉब में थे, और जो रूम हमने ले रखा था, मकान मालिक को यह बताकर लिया था कि दो ही लड़के रहेंगे, क्योंकि हमें मालूम था कि हममें से कोई दो तो हमेशा टूर पर रहेंगे, लेकिन संयोग से (या कहें कि दुर्योग से) कभी-कभार ऐसा मौका आ ही जाता था कि हम चारों साथ-साथ उसी शहर में पाये जाते थे, तब समस्या यह होती थी कि अब क्या करें? यदि रात को जल्दी घर पहुँचें तो मकान मालिक को कैफ़ियत देनी पड़ेगी, फ़िर क्या था हमारा एक ही ठिकाना होता था, छावनी चौक स्थित “जायसवाल बार”। खूब जमती थी महफ़िल जब मिल जाते थे चार यार…।

दो-चार दिन पहले एक ई-मेल प्राप्त हुआ जिसमें दारू पीने के बाद (बल्कि चढ़ने के बाद) होने वाले वार्तालाप (बल्कि एकालाप) पर विचार व्यक्त किये गये थे। वह ई-मेल पढ़कर काफ़ी पुरानी सी यादें ताज़ा हो आईं, उन दिनों की जब हम भी पीते थे। जी हाँ, बिलकुल पीते थे, सरेआम पीते थे, खुल्लमखुल्ला पीते थे, छुप-छुपकर नहीं, दबे-ढ़ंके तौर पर नहीं।

आज वह ई-मेल देखा और बरसों पुरानी याद आ गई, उन दिनों में जब हम चारों की ही शादी नहीं हुई थी और कम्पनी की मेहरबानी से जेब में पैसा भी दिखता रहता था। 1988 में तनख्वाह के तौर पर उस प्रायवेट कम्पनी में 940 रुपये बेसिक मिलता था, टूरिंग के लिये 120 रुपये रोज़ाना (होटल खर्च) अलग से। महीने में 20-22 दिन तो टूर ही रहता था, सो लगभग 1000 रुपये महीने की बचत हो ही जाती थी। लेकिन उन दिनों उस उमर में भला कोई “बचत” के बारे में सोचता भी है? (ठीक यही ट्रेण्ड आज भी है, वक्त भले बदल जाये नौजवानों की आदतें नहीं बदलतीं)। दारू-सिगरेटनुमा छोटी-मोटी ऐश के लिये उन दिनों 1000 रुपये प्रतिमाह ठीक-ठाक रकम थी। चारों यार मिलते, साथ बैठते, शाम को 8 बजे बार में घुसते और रात को दो बजे निकलते (जब वहाँ का चौकीदार भगाता)। वो भी क्या सुहाने दिन थे… याद न जाये बीते दिनों की… बार में खासतौर पर काँच वाली खिड़की के पास की टेबल चुनते थे, उन दिनों लड़कियों ने ताजी-ताजी ही जीन्स पहनना शुरु किया था, सो कभी-कभार ही कोई एकाध लड़की जीन्स पहने हुए दिखाई दे जाती थी, बस फ़िर क्या था, उस पर विस्तार से चर्चा की जाती थी (तब तक एक पैग समाप्त होता था)… “बैचलर लाइफ़” की कई-कई यादें हैं कुछ सुनहरी, कुछ धुँधली, कुछ उजली, कुछ महकती, कुछ चहकती हुई… बहरहाल उसकी बात कभी बाद में किसी पोस्ट में की जायेगी, फ़िलहाल आप मजे लीजिये उन चन्द वाक्यों का जो कि दारू चढ़ने के बाद खासमखास तौर पर कहे जाते हैं (कहे क्या जाते हैं, बके जाते हैं)…

मैं यहाँ आमतौर पर बके जाने वाले वाक्य जैसे “यार ये पाँच में से चार लाईटें बन्द कर दे…” (भले ही कमरे में एक ही लाईट जल रही हो), या फ़िर “वो देख बे, खिड़की में भूत खड़ा है…”, “अरे यार मेरे को कुछ हो जाये तो 100 डायल कर देना…”, “भाई मेरे को चढ़ी नहीं है तू टेंशन नहीं लेना…”… ये तो कॉमन लाईने हैं ही लेकिन और भी हैं जैसे –

1) तू मेरा भाई है भाई… (अक्सर ये भाई… टुन्न होने के बाद, “बाई” सुनाई देता है)
2) यू नो आय एम नॉट ड्रन्क!!! (पीने के बाद अंग्रेजी भी सूझने लगती है कभी-कभी)
3) हट बे गाड़ी मैं चलाऊँगा…
4) तू बुरा मत मानना भाई… (साथ में पीने के बाद सब आपस में भाई-भाई होते हैं)
5) मैं दिल से तेरी इज्जत करता हूँ…
6) अबे बोल डाल आज उसको दिल की बात, आर या पार… (चने के झाड़ पर चढ़ाकर जूते खिलवाने का प्रोग्राम)
7) आज साली चढ़ ही नहीं रही, पता नहीं क्या बात है? (चौथे पैग के बाद के बोल…)
8) तू क्या समझ रहा है, मुझे चढ़ गई है?
9) ये मत समझना कि पी के बोल रहा हूँ…
10) अबे यार कहीं कम तो नहीं पड़ेगी आज इतनी? (खामखा की फ़ूँक दिखाने के लिये…)
11) चल यार निकलने से पहले एक-एक छोटा सा और हो जाये…
12) अपने बाप को मत सिखाओ बेटा…
13) यार मगर तूने मेरा दिल तोड़ दिया… (पाँचवे पैग के बाद का बोल…)
14) कुछ भी है पर साला भाई है अपना, जा माफ़ किया बे…
15) तू बोल ना भाई क्या चाहिये, जान हाजिर है तेरे लिये तो… (ये भी पाँचवे पैग के बाद वाला ही है…)
16) अबे मेरे को आज तक नहीं चढ़ी, शर्त लगा ही ले साले आज तो तू…
17) चल आज तेरी बात करा ही देता हूँ उससे, मोबाइल नम्बर दे उसका… क्या अपने-आपको माधुरी दीक्षित समझती है साली…
18) अबे साले तेरी भाभी है वो, भाभी की नज़र से देखना उसको आज के बाद…
19) यार तू समझा कर, वो तेरे लायक नहीं है… (यानी कि मेरे लायक ही है…)
20) तुझे क्या लगता है मुझे चढ़ गई है, अबे एक फ़ुल और खतम कर सकता हूँ…
21) यार आज उसकी बहुत याद आ रही है…

और सबसे खास और सम्भवतः हर बार बोला जाने वाला वाक्य…
22) बस…बहुत हुआ, आज से साली दारू बन्द… (तगड़ी बहस और लगभग झगड़े की पोजीशन बन जाने पर)

और इस अन्तिम “घोषवाक्य” पर सच्चाई और निष्ठा से अमल करने वाले 5% ही होते हैं, जिनमें मैं भी शामिल हूँ… 

ऐसा माना जाता है कि जीवन में सबसे गोल्डन समय होता है बचपन का जो कि सही भी है क्योंकि बचपन में हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करना पड़ती, परन्तु मेरे हिसाब से जीवन का एक और दौर गोल्डन होता है - वह है नौकरी लगने और शादी होने के बीच का समय, जिसे हम “प्योर बैचलर लाइफ़” कह सकते हैं, जब जेब में पैसा भी होता है और पत्नी-बच्चों की जिम्मेदारी भी नहीं होती… इस गोल्डन दौर में ही असली और खुलकर मौजमस्ती की जाती है। हाँ, एक बात है कि… उम्र का यह गोल्डन दौर ज़्यादा लम्बा भी नहीं होना चाहिये… वरना…। हर काम करने का एक समय होता है, यदि व्यक्ति उसके बाद भी अपना शौक जारी रखे तो समझना चाहिये कि उसका शौक व्यसन बन चुका है, इसलिये शराब पीने की मनाही नहीं है, लेकिन आपको अपनी “लिमिट” पता होना चाहिये और आपमे इतना आत्मविश्वास होना चाहिये कि जब चाहें उसे छोड़ सकें, नहीं तो फ़िर वह आनन्द नहीं रह जायेगा, बल्कि लोगों और परिवार को दुःख पहुँचायेगा।

बहरहाल, जिसने कभी पी नहीं, वह इसको नहीं समझ सकता, लेकिन उसे आलोचना करने का भी हक नहीं है, क्योंकि उसे क्या मालूम कि “सुरा” क्या बला होती है, बड़े-बड़े लोगों ने इस “चमत्कारिक शै” के बारे में बहुत सारे कसीदे काढ़ रखे हैं… डॉक्टर भी कहते हैं कि यदि रोज़ाना एक पैग लिया जाये तो शरीर कई बीमारियों से बचा रह सकता है… तो हम और आप क्या चीज़ हैं…

अन्त में एक वाकया –रोज-ब-रोज पीकर घर आने वाले पति से पत्नी ने कहा कि कल से मैं भी तुम्हारे साथ बार में चलूंगी और शराब पियूंगी, देखते हैं क्या होता है?
पति ने समझाया कि शराब तुम्हारे लायक नहीं है, तुम वहाँ मत चलो।
पत्नी ने जिद की और दोनों साथ में बार में पहुँचे, व्हिस्की का ऑर्डर दिया।
पहला सिप लेते ही पत्नी ने बुरा सा मुँह बनाया और लगभग उबकाई लेते हुए बोली, “कितना घटिया, कसैला और कड़वा स्वाद है”…
पति दार्शनिक अन्दाज़ में बोला – देखा!!! और तुम सोचती थीं कि हम लोग यहाँ ऐश करते हैं…

नोट : कभी-कभी ऐसी पोस्ट भी लिख लेना चाहिये…

No comments:

Post Top Ad

Your Ad Spot

Pages