- त्रिनाथ मिश्र, मेरठ
तो क्या इस बार #VarunGandhi के हारने की संभावना थी?
सुलतानपुर से सांसद वरुण गांधी ( MP Varun Gandhi ) पर विकास के नाम पर जनता का मूर्ख बनाने का दावा किया जा रहा है। पिछले पाचं वर्षों में जनता के बीच मुश्किल से पहुंचने वाले वरुण गांधी को इस बार वहां की जनता ने नकारना शुरू कर दिया था, इसकी भनक लगते ही मेनका गांधी ने वरुण को बहुत ही चालाकी से सुलतानपुर लोकसभा सीट ( Sultanpur Lok Sabha Seat ) से हटा दिया और वहां से स्वयं मैदान संभालने में जुट गईं।सुलतानपुर संसदीय सीट देखा जाए तो भाजपा के लिए हमेशा ही मुफीद रही है और इस सीट पर हर बार सुलतानपुर की भोली जनता को ठगने के लिए पैराशूट कैंडिडेट का इस्तेमाल किया जाता रहा है। जांति-पांति, ऊंच-नीच का बोलबाला हर बार इस क्षेत्र में रहा है। हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर समाज को वर्गों में बांटकर कार्यकर्ताओं के सहारे राज करना सियासी पार्टियों का प्रमुख लक्ष्य बन गया है।
और अब भाजपा ने अपने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को गुमराह करने का कार्य किया है। इसका आभाष उन कार्यकर्ताओं को बखूबी है जो भाजपा के साथ कंधे सेकेधा मिलाकर चल रहे हैं और पार्टी में उपेक्षित हैं।
महिलाओं का हर बार हुआ है 'बंटाधार', तो मेनिका का कैसे होगा बेड़ा पार?
सुलतानपुर विधानसभा सीट पर हर बार महिलाओं को हार का मुंह देखना पड़ा है और इसी का नतीजा है कि पुरुष प्रधान समाज को अब शायद महिलाओं को आगे बढ़ते हुए देखने की क्षमता नही रह गई है।इन महिला प्रत्याशियों को मिली हार-
इस सीट से 1998 में डॉ.रीता बहुगुणा जोशी चुनाव लड़ीं थी लेकिन वो भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र बहादुर सिंह से हार गईं। वर्ष 2004 में भाजपा प्रत्याशी डॉ. वीणा पाण्डे को बसपा प्रत्याशी मोहम्मद ताहिर खां ने हराया। 1999 में कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार दीपा कौल को बसपा प्रत्याशी जयभद्र सिंह ने शिकस्त दी। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अमिता सिंह भी भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान सांसद रहे वरुण गांधी से करारी हार का सामना करना पड़ा।अब मेनिका गांधी का सोचना है कि उन्हें बेटे की लाज बचानी है या फिर अपनी 'इज्जत' गवांनी है। वैसे जनता को इस बार किसे चुनना है इसका ठीक प्रकार से आंकलन करने में थोड़ा वक्त लगेगा।
No comments:
Post a Comment