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Jan 13, 2020

1947 में पाक आर्मी ने जला दिया था दादा का गुरुद्वारा, गोली लगने पर भी प्रद्युमन नहीं टूटीं, भारत आकर बनवाया गुरुद्वारा


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देशभर में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 13 जनवरी को है। खासतौर पर पंजाब और हरियाणा में मनाए जाने वाले इस त्योहार की भोपाल के गुरुद्वारों में भी खास तैयारियां की गई हैं। जानिए, भोपाल के बाबा जोगा सिंह के गुरुद्वारा से जुड़ी एक ऐतिहासिक कहानी...
भोपाल.भोपाल में दो दर्जन गुरुद्वारे हैं। सबकी अपनी खासियत है। लेकिन, ओल्ड सुभाष नगर स्थित गुरुद्वारा संत बाबा जोगा सिंध की एक अलग कहानी है जो हमें देश के विभाजन और कश्मीर में हिंदू और सिख समुदाय के साथ हुए अत्याचार की याद दिलाती है। दरअसल, ये गुरुद्वारा 1960 में पाक अधिकृत कश्मीर स्थित डेरा गुफा मुज्जफराबाद की याद में बनाया गया है। मुज्जफराबाद के गुरुद्वारे को अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों की मदद से जला दिया था।
भोपाल स्थित इस गुरुद्वारे की देखरेख संत बाबा जोगा सिंध की पोती प्रद्युमन सिंह कौर कर रही हैं। प्रद्युमन कौर करीब 100 साल की हैं। प्रद्युमन के जेहन में आज भी मुज्जफराबाद और गुरुद्वारे पर हमले की याद ताजा हैं। वे बताती हैं कि उस समय मुज्जफराबाद काफी खुशहाल इलाका था। यहां से सीधे एबटाबाद और रावलपिंडी पहुंचा करते थे। वह भी कई बार इन दोनों स्थानों पर जा चुकी हैं।
प्रद्युमन सिंह कहती हैं- "भारत की आजादी के समय कश्मीर में काफी हलचल थी। हालात बिगड़ रहे थे। अफवाहें बैचेनी पैदा कर रही थीं। वहीं पर मेरे 'परदादा' जोगा सिंह ने गुरुद्वारा बनवाया था। वे पंजाब समेत पूरे कश्मीर में संत के रूप में जाने जाते थे। उस समय गुरुद्वारे में करीब 300 लोग आस-पास के इलाकों से आ गए थे। संत बाबा किशन सिंह ने सबका जिम्मा संभाल रखा था।"
"मेरे परिवार के लोगों ने किशन सिंह को मुज्जफराबाद छोड़ने कहा, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने कहा कि वे कहीं नहीं जाएंगे। मौत से क्या डरना, जहां आना होगी वहां आ जाएगी। मैं अपने गुरू को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। अक्टूबर का महीना चल रहा था। अचानक तोप के गोले की आवाज आई। मैंने गुरुद्वारे की खिड़की का दरवाजा खोला तो देखा पाकिस्तानी फौज मुज्जफराबाद में प्रवेश कर रही है। थोड़ी देर बाद फौज गुरुद्वारे के सामने आ गई और फायरिंग शुरू कर दी। उस समय किशन सिंह गुरुग्रंथ साहिब का पाठ कर रहे थे। फायरिंग की चपेट में आने से वे वहीं गिर गए। इसके बाद गुरुद्वारे में लाशों का ढेर लग गया। महिलाएं गुरुद्वारे के पीछे के दरवाजे से निकल गईं।"
"पाकिस्तानी सैनिक और कबाइली हमारा पीछा कर रहे थे। मेरे साथ जान बचाकर जा रहे लोगों की गोली लगने से मौत हो गई। इतने में एक गोली मेरी पीठ में लगी। मैंने पीठ पर हाथ लगाया तो एक गोली हथेली की उंगली को चीरकर पीठ में धंस गई। मुझे कुल चार गोलियां लगीं। इसके बाद सैनिक मुझे पाकिस्तान ले गए। वहां जिस स्थान पर रखा गया था, वहां लोगों का मेरे प्रति व्यवहार अच्छा था। क्योंकि वहां के अधिकतर लोग मेरे परिवार के लोगों को जानते थे। कुछ महीने बाद मुझे भारत भेज दिया गया।"
"कुछ दिन बाद पता चला कि मुज्जफराबाद का हमारा गुरुद्वारा पाकिस्तानियों ने लूटने के बाद जला दिया है। करीब एक साल बाद मेरी शादी हमारे परिवार के परिचित जसवंत सिंह से हो गई और मैं उनके साथ भोपाल आ गई। यहां उस समय दो या तीन गुरुद्वारे थे। मैं और मेरे पति वहां अक्सर जाते रहे। इसके बाद 1960 में हमने गोविंदपुरा गांव में जमीन लेकर यहां अपने दादाजी की याद में गुरुद्वारा बनवाया, जिसकी सेवा आज भी कर रही हैं।"
बाबा जोगा सिंह को मुस्लिम लोग पीर कहते थे
कश्मीर और पंजाब समेत पूरे देश में बाबा जोगा सिंह को संत की उपाधि प्राप्त है। पूरे कश्मीर क्षेत्र में बाबा जोगा सिंह को मुस्लिम लोग पीर कहते थे। उन्होंने समाज उत्थान के सैकड़ों काम किए थे। उनके द्वारा स्थापित किए गए सूबा सरहद में मानसेरा, हरिपुर तथा हवेलियां नामक स्थानों पर थे। ये सभी अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हैं। पंजाब में गली तेलीया, लूण मंडी, अमृतसर, फतेहकदल, श्रीनगर, मुज्जफराबाद, कश्मीर में बाबा जोगा सिंह द्वारा बनवाए गए डेरे आज भी मौजूद हैं।


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प्रद्युमन सिंह कौर आज भी 72 साल पहले मुज्जफराबाद की घटना को याद कर सिहर जाती हैं।
यह गुरुद्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नहीं, बल्कि भोपाल के ओल्ड सुभाष नगर में हैं।


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