भोपाल. भारत भवन में रविवार को कुछ किताबों के गंभीर मुद्दों पर चर्चा हुई। अपनी किताब 'द राइज एंड फॉल ऑफ एमरल्ड टाइगरÓ पर चर्चा करते हुए रघु चुंडावत ने कहा कि वर्तमान में टाइगर रिजर्व के अंदर बाघिनों की बढ़ती मृत्यु दर बाघ संरक्षण में सबसे बड़ा खतरा है। बाघिनों की मौत ज्यादा होने से पन्ना नेशनल पार्क में बाघ समाप्त हुए थे। रघु ने ये किताब पन्ना नेशनल पार्क में 10 साल के शोध कार्य के बाद लिखी है।
रघु ने कहा कि आज हम विश्व से यह कह रहे हैं कि हमने बाघों की संख्या दोगुनी कर दी है। हम आंकड़ों पर उत्सव मना रहे हैं, लेकिन सच्चाई तो यह है कि व्यवस्थित प्रयासों के अभाव में बाघ पर खतरा मंडरा रहा है। बाघों की संख्या बढऩे की मुख्य वजह शावकों की गिनती है। पहली बार ऐसा हुए है, जब 12 माह के शावक की गणना भी बाघों में कर ली। इसके पहले डेढ़ साल व उससे अधिक उम्र के शावकों को शामिल किया जाता था। इसके अलावा बाघों की गणना की क्षेत्रफल को भी बढ़ाया गया है। पहले पगमार्क से बाघों की गणना की जाती थी, अब कैमरे के अलावा कई साइंटिफिक और तकनीकी उपकरणों को गणना को आधार बनाया गया है। केन-बेतवा लिंक परियोजना और हीरा माइनिंग से पन्ना नेशनल पार्क के वन्यजीवों पर फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा कि माइनिंग लॉबी हावी हो रही है। इससे पार्क के आसपास के क्षेत्रों में खनन का दबाव बढ़ रहा है। उत्खनन का बाघों के रहवास विकास में भी असर पड़ता है।
रघु ने कहा कि आज हम विश्व से यह कह रहे हैं कि हमने बाघों की संख्या दोगुनी कर दी है। हम आंकड़ों पर उत्सव मना रहे हैं, लेकिन सच्चाई तो यह है कि व्यवस्थित प्रयासों के अभाव में बाघ पर खतरा मंडरा रहा है। बाघों की संख्या बढऩे की मुख्य वजह शावकों की गिनती है। पहली बार ऐसा हुए है, जब 12 माह के शावक की गणना भी बाघों में कर ली। इसके पहले डेढ़ साल व उससे अधिक उम्र के शावकों को शामिल किया जाता था। इसके अलावा बाघों की गणना की क्षेत्रफल को भी बढ़ाया गया है। पहले पगमार्क से बाघों की गणना की जाती थी, अब कैमरे के अलावा कई साइंटिफिक और तकनीकी उपकरणों को गणना को आधार बनाया गया है। केन-बेतवा लिंक परियोजना और हीरा माइनिंग से पन्ना नेशनल पार्क के वन्यजीवों पर फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा कि माइनिंग लॉबी हावी हो रही है। इससे पार्क के आसपास के क्षेत्रों में खनन का दबाव बढ़ रहा है। उत्खनन का बाघों के रहवास विकास में भी असर पड़ता है।
- किताब पर चर्चा
अजय मोनटोकिया और उनकी पत्नी अतिमा ने 'थ्रीज सेवन फॉर यू थ्री फॉर मीÓ पर चर्चा की। अजय ने कहा कि कहा कि इनकम टैक्स वालों को सुबह-रात कभी भी रेड डालना पड़ती है, तो बहुत ही खराब फील होता है। व्यक्ति के रूप में टैक्स मेन को यह पसंद नहीं होता, लेकिन यह उसका कर्तव्य है। इस तरह की रेड से उसके परिवार, भावनाएं, रोमांस, लाइफ सब प्रभावित होती है। अजय की पत्नी अतिमा ने बताया कि एक टैक्स मेन की पत्नी होने से किस तरह जिंदगी में चुनौतियां आती हैं। पति कभी भी रेड पर चला जाता है। एक दिन, दो दिन और कभी-कभी इससे भी ज्यादा। इससे पत्नी की भावनाएं, प्यार और परिवार पर असर होता है। उन्होंने कहा कि टैक्स मेन एक तरह से रियल लाइफ में सुपरमेन-स्पाइडरमेन जैसे ही रिप्लेस करता है। टैक्स रेड और लाइफ विषय परसीमा रायजादा ने टैक्स मेन की लाइफ की चुनौतियों, अफेयर और लाइफ पर तीखे सवाल किए। सीमा ने पूछा कि तीन नंबर का पैसा कौन सा होता है, तो जवाब आया कि वह जो पति-पत्नी को गिफ्ट जैसे तरीके में मिलता है। यह एक तरह से पत्नी का पैसा होता है।
- फिल्म की तरह ही करते हैं रेड
अजय आयकर अधिकारी थे। वीआरएस लेने के बाद उन्होंने टैक्स मेन यानी उनकी जिंदगी, परिवार और कामकाज के अनुभवों पर किताब लिखी। 'थ्रीज सेवन फॉर यू थ्री फॉर मीÓ किताब में बताया कि टैक्स को लोग फाइन मानते हैं, लेकिन यह सरकार को सहयोग है। यहां अतिमा ने अपनी किताब थिंग्स बेटर द सेक्स का कवर पेज भी लॉन्च किया। वे यह किताब अभी लिख रही हैं।
- नफरत करती है दुनिया
अजय ने कहा कि टैक्स मेन को दुनिया नफरत की दृष्टि से देखती है, लेकिन वह भी एक इंसान है। रेड फिल्म का उल्लेख करके अजय ने कहा कि फिल्म में जो दिखाया है, लगभग वैसा ही होता है। अब टैक्स का सिस्टम फेसलेस होता जा रहा है। सब ऑनलाइन है। अब इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन कहां पोस्टेड है।
- दलितों को नहीं मिला बराबरी का अधिकार
दलितों के उत्थान, उनके मानव अधिकार की बात लगातार होती है, लेकिन उनकी पीड़ा को भी समझना जरूरी है। पुस्तक 'कालीज डॉटरÓ में इसी को बताने का प्रयास किया गया। यह कहना है रिटायर आईएएस राघव चंद्रा का। जाति, वर्ग और मानव अधिकार विषय चंद्रा की इस किताब पर चर्चा हुई। चंद्रा ने दलित महिला के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए बताने का प्रयास किया कि जाति और वर्ग आज के दौर में किसी भी संभावनाओं और भविष्य कैसे प्रभावित करते हैं। उन्होंने बताया कि एक दलित महिला की परेशानियों को समझना और उसके बारे में लिखना मुश्किल रहा, क्योंकि चरित्र को जीवंत के साथ न्यायोचित बनाने की जरूरत थी। चर्चा के दौरान उन्होंने पुस्तक के कुछ अंश भी पढ़े। एक श्रोता ने चंद्रा से पूछा कि दलितों को बराबरी का दर्जा देने में इतने सालों बाद भी कहां कमी रह गई। इस पर चंद्रा ने सिर्फ इतना कहा कि इसका जवाब बाद में देंगे।
अजय मोनटोकिया और उनकी पत्नी अतिमा ने 'थ्रीज सेवन फॉर यू थ्री फॉर मीÓ पर चर्चा की। अजय ने कहा कि कहा कि इनकम टैक्स वालों को सुबह-रात कभी भी रेड डालना पड़ती है, तो बहुत ही खराब फील होता है। व्यक्ति के रूप में टैक्स मेन को यह पसंद नहीं होता, लेकिन यह उसका कर्तव्य है। इस तरह की रेड से उसके परिवार, भावनाएं, रोमांस, लाइफ सब प्रभावित होती है। अजय की पत्नी अतिमा ने बताया कि एक टैक्स मेन की पत्नी होने से किस तरह जिंदगी में चुनौतियां आती हैं। पति कभी भी रेड पर चला जाता है। एक दिन, दो दिन और कभी-कभी इससे भी ज्यादा। इससे पत्नी की भावनाएं, प्यार और परिवार पर असर होता है। उन्होंने कहा कि टैक्स मेन एक तरह से रियल लाइफ में सुपरमेन-स्पाइडरमेन जैसे ही रिप्लेस करता है। टैक्स रेड और लाइफ विषय परसीमा रायजादा ने टैक्स मेन की लाइफ की चुनौतियों, अफेयर और लाइफ पर तीखे सवाल किए। सीमा ने पूछा कि तीन नंबर का पैसा कौन सा होता है, तो जवाब आया कि वह जो पति-पत्नी को गिफ्ट जैसे तरीके में मिलता है। यह एक तरह से पत्नी का पैसा होता है।
- फिल्म की तरह ही करते हैं रेड
अजय आयकर अधिकारी थे। वीआरएस लेने के बाद उन्होंने टैक्स मेन यानी उनकी जिंदगी, परिवार और कामकाज के अनुभवों पर किताब लिखी। 'थ्रीज सेवन फॉर यू थ्री फॉर मीÓ किताब में बताया कि टैक्स को लोग फाइन मानते हैं, लेकिन यह सरकार को सहयोग है। यहां अतिमा ने अपनी किताब थिंग्स बेटर द सेक्स का कवर पेज भी लॉन्च किया। वे यह किताब अभी लिख रही हैं।
- नफरत करती है दुनिया
अजय ने कहा कि टैक्स मेन को दुनिया नफरत की दृष्टि से देखती है, लेकिन वह भी एक इंसान है। रेड फिल्म का उल्लेख करके अजय ने कहा कि फिल्म में जो दिखाया है, लगभग वैसा ही होता है। अब टैक्स का सिस्टम फेसलेस होता जा रहा है। सब ऑनलाइन है। अब इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन कहां पोस्टेड है।
- दलितों को नहीं मिला बराबरी का अधिकार
दलितों के उत्थान, उनके मानव अधिकार की बात लगातार होती है, लेकिन उनकी पीड़ा को भी समझना जरूरी है। पुस्तक 'कालीज डॉटरÓ में इसी को बताने का प्रयास किया गया। यह कहना है रिटायर आईएएस राघव चंद्रा का। जाति, वर्ग और मानव अधिकार विषय चंद्रा की इस किताब पर चर्चा हुई। चंद्रा ने दलित महिला के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए बताने का प्रयास किया कि जाति और वर्ग आज के दौर में किसी भी संभावनाओं और भविष्य कैसे प्रभावित करते हैं। उन्होंने बताया कि एक दलित महिला की परेशानियों को समझना और उसके बारे में लिखना मुश्किल रहा, क्योंकि चरित्र को जीवंत के साथ न्यायोचित बनाने की जरूरत थी। चर्चा के दौरान उन्होंने पुस्तक के कुछ अंश भी पढ़े। एक श्रोता ने चंद्रा से पूछा कि दलितों को बराबरी का दर्जा देने में इतने सालों बाद भी कहां कमी रह गई। इस पर चंद्रा ने सिर्फ इतना कहा कि इसका जवाब बाद में देंगे।
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