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Jan 14, 2020

देशभर में नाबालिगों के लापता होने में मध्यप्रदेश पहला और बालिगों के गायब होने के मामले में तीसरे नंबर पर


हरेकृष्ण दुबोलिया | भोपाल .देशभर में बीते तीन साल में सर्वाधिक बच्चे मध्यप्रदेश में लापता हुए हैं। वहीं वयस्क लोगों के लापता होने के मामले में मप्र देश में तीसरे स्थान पर है। 2018 में मप्र में कुल 10,038 नाबालिग लापता हुए। वयस्क वहीं लापता बालिगों की संख्या 42365 थी। इसके अलावा 5282 बच्चे और 37977 इंसान इसके पहले से गायब हैं। एनसीआरबी-2018 के मुताबिक 2012 से 31 दिसंबर 2018 तक मप्र के 6036 बच्चे और 46209 इंसान बेसुराग हैं।
ये ना तो अपने गांव-शहर लौटकर आए और न ही इनके कहीं और होने की जानकारी लगी है। बावजूद इसके मप्र में अलग से एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) का गठन नहीं हो सका है। खानापूर्ति के तौर पर प्रदेश में एक डीएसपी को अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का प्रभारी बनाया गया है। गौरतलब है कि पड़ोसी राज्य राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र, यूपी और दिल्ली समेत तमाम राज्य बच्चों और महिलाओं की तस्करी और गुमशुदगी के मामलों को रोकने के लिए अलग से एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का गठन कर चुके हैं। कई राज्यों में अलग से एनएचटीयू थाने भी खोले गए हैं, लेकिन मप्र में अब तक न तो एक भी एएचयू थाना बना और न ही अलग से मॉनिटरिंग सेल गठन हो पाई।

जांच के बाद पुलिस ने माना 2018 में 105 लोग हुए थे ट्रैफिकिंग के शिकार : एनसीआईबी के मुताबिक 2018 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 63 केस दर्ज किए गए। वहीं 105 लोग ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुए। इनमें से 73 नाबालिग और 32 बालिग थे। पुलिस ने 72 नाबालिगों और 28 बालिगों को बरामद करने में सफलता भी पाई थी। मप्र में 32 को बंधुआ मजदूरी के लिए और 27 को जबरन शादी के लिए खरीदा-बेचा गया था। 5 को वैश्यावृत्ति के लिए और 1 को स्थानीय स्तर पर दास बनाने के लिए इसका शिकार होने पड़ा।
2018 में कुल 10,038 नाबालिग लापता हुए, वहीं वयस्कों की संख्या 42365 थी
एेसी है मप्र में लापता लोगों की स्थिति
वर्ष 2018 में गायब हुए 42365
2018 के पहले से लापता 37977
31 दिसंबर 2018 तक कुल लापता 80342
मिले या लौट आए 34133
बेसुराग 46209
  • 31 दिसंबर 2018 तक
  • मिले बच्चे -9282
  • बेसुराग रहे बच्चे - 6036
प्रदेश में किस साल कितने बच्चे हुए लापता
वर्ष लड़के लड़कियां कुल गायब
2016 2466 6037 8,503
2017 2701 7409 10,110
2018 2464 7574 10,038
डेडिकेटेड एंटी ह्यूमन ट्रैफिक यूनिट जैसी कोई ईकाई हमारे यहां नहीं है। यह फैसला शासन को लेना है, क्योंकि अलग से स्टाफ और बजट की जरूरत होगी। हमने हर जिले में एक डीएसपी को अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग का प्रभारी बनाया है। यदि थाना स्तर पर लगता है कि किसी केस में ट्रैफिकिंग के एंगल से जांच की जानी है तो डीएसपी की निगरानी में एसआईटी बनाकर पड़ताल की जाती है। मप्र में हर तरह के क्राइम का फ्री एंड फेयर रजिस्ट्रेशन होता है, इसलिए बच्चों और महिला अपराध या गुमशुदगी की संख्या यहां अधिक नजर आती है।- अन्वेष मंगलम, एडीजी, महिला अपराध

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