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May 28, 2020

'मीडिया ट्रायल व न्यायालय की भूमिका' वेबिनार में खुलकर बोले वक्ता, गिनाई मीडिया की भूमिका

  • रश्मि देशवाल, ई-रेडियो इंडिया
मेरठ। स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ के गणेश शंकर विद्यार्थी सुभारती पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग तथा सरदार पटेल सुभारती लाॅ काॅलेज के संयुक्त तत्वाधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय मीडिया द्वारा ट्रायल एवं न्यायालय की भूमिका था। मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ0 उदय शंकर, आईआईटी खड़कपुर तथा प्रोफेसर आनंद पॅवार, राजीव गांधी राष्ट्रीय लाॅ विश्वविद्यालय पटियाला मे रहे है।

व्यवस्थापिका निष्क्रिय हो जाने पर मीडिया सक्रिय होती है: डाॅ0 उदय शंकर

इस राष्ट्रीय वेबीनार के मुख्य अतिथि डाॅ0 उदय शंकर जी ने बताया कि जब व्यवस्थापिका निष्क्रिय हो जाती है या व्यवस्था करने में असफल हो जाती है, तब ऐसी संस्थाओं की निष्क्रियता खत्म करने के लिए मीडिया को एक सकारात्मक एवं सक्रिय भूमिका निभानी पड़ती है, यह सक्रियता या अवधारणा ही मीडिया ट्रायल कहलाती है, दुनिया भर में हुए आंदोलनों में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। किसी भी खास मामले में हुए भ्रष्टाचार की जानकारी आम आदमी तक मीडिया के जरिए ही पहुँचती है। 

मीडिया ट्रायल एक ऐसा जरिया है जिसके द्वारा आम आदमी की अभिव्यक्ति को आवाज मिलती है। मीडिया की वजह से ही बहुत सारे मामले ऐसे हैं जिनसे जनता की आवाज कार्यपालिका व न्यायपालिका तक पहुँची है और जनता की आवाज को न्यायपालिका ने भी नकारा नहीं है। हालाकिं मीडिया ज्यादातर मामलों में न्याय पूर्ण दिखता ळै लेकिन कुछ मामले ऐसे भी है जो खासकर मीडिया हाउसों के हित से जुड़े हो वहाँ पर मीडिया पर पक्षपात पूर्ण होने का आरोप भी लगा है।
यह आरोप अक्सर मीडिया पर लगता है कि किसी अपराध को महत्वपूर्ण बनाकर मीडिया खुद ही जांचकर्ता, वकील तथा जज बन जाता है। इस मीडिया ट्रायल का नतीजा यह होताा है कि पुलिस जांचकर्ता ही नहीं बल्कि न्यायधीश भी दबाव में आ जाते हैं और हकीकत और फैसला सब कुछ उल्टा हो जाता है। प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है परन्तु जनमत न्यायधीश को जो कि एक मानव ही है उसकी सोच को प्रभावित कर सकता है।

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अपराधों को बेनकाब करना है मीडिया का मकसद: आनंद पंवार

प्रोफेसर आनंद पवार जी, राजीव गांधी लाॅ विश्विद्यालय पटियाला ने बताया कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यूंही नहीं कहा जाता। जैसा कि जेसिका लाल मर्डर से लेकर आरूषि हत्याकांड अथवा कोर्ड स्टिंग आपरेशन सभी पर मीडिया ने सबसे ज्यादा कवरेज की है। कई प्रसाशनिक आफिसर के भ्रष्टाचार की सूचना हमें मीडिया के द्वारा ही मिलती है। आय से अधिक सम्पत्ति के मामलें में कई मीडिया कवरेज हमारी आंख खोलने के लिए काॅफी है। इसके इलावा कथिक धार्मिक बाबाओं का भंड़ाफोड़ करने के लिए मिडिया की भूमिका सराहनीय है।

उन्होंने बताया की मीडिया ट्रायल आम आदमी की आंकाक्षा और जनमत को अभिव्यक्ति देने का एक माध्यम है। चर्चित भ्रष्टाचार या न्यायिक मामलों में मीडिया के माध्यम से ही आम आदमी के नजर में यह मामले सामने आए। उन्होंने वेबिनार के अन्त में अम्बेडकर का उदाहरण बताया कि मीडिया के लिए स्वंत़त्रता एंव निर्भिकता आवश्यक है। उन्होंने बताया कि यह वाद-विवाद का विषय है कि न्याय की प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका कितनी सकारात्मक या नाकारात्मक हो सकती है। 
प्रियदर्शनी मटू केस एक ऐसा ही उदाहरण है, जहाँ मीडिया ने अपनी भूमिका निभाकर न्याय की प्रक्रिया में अपनी सकारात्मक भूमिका निभायीं। सरदार पटेल सुभारती लाॅ काॅलेज के डीन एवं प्राचार्य डाॅ0 वैभव गोयल जी ने बताया की मीडिया विषम परिस्थितियों में समाचार की विवेचना कर आम सहमति तक पहुँचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लेकिन मीडिया को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अपनी गुणवक्ता को बरकरार रखना होगा। सुप्रिम कोट एवं अन्य न्यायलों में चलने वाले वाद पर मीडिया लगातार अपनी राय रख कर जनता को उनसे जोड़ता है तथा आरोपित के पक्ष एवं विपक्ष में अपनी राय भी जाहिर करता है। कभी कभी मीडिया भ्रमाक सूचनाएँ भी देता है। 
जिनसे बचने के लिए मीडिया को जागरूक रहना होगा। उन्होेंने आरूषि मर्डर केस के माध्यम से बताया कि मीडिया ने लगातार कवरेज देकर इस केस का रूख ही अलग कर दिया था। इंदिरा गांधी हत्याकांड में भी प्रेस की भूमिका न्याय की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए नाकारी नहीं जा सकती । किन्तु राजनितिक दखलंदाजी से दूर होकर मीडिया को न्याय प्रक्रिया में अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी। तब ही व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया की भूमिका जन जर्नादन के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होगी।
गणेश शंकर विद्याथी पत्रकारिता एवं जनंसचार विभाग के डीन डाॅ नीरज कर्ण सिंह ने वेबिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि यहाँ की मीडिया जनमत बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मीडिया और समाज की जब भी बात की जाती है तो मीडिया को समाज में जागरूकता फैलाने वाले साधन के रूप हमेशा प्रसंशा मिली है। उन्होंने बताया कि मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंम्भ यूंहि नहीं कहा जाता। सरकारी नितियों पर जनता की राय जानकर उसे नीति निर्धारण तक पहुँचाने में एक माध्यम का कार्य मीडिया ही करता है।
किन्तु न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करना मीडिया की कभी मंसा नहीं रहती है। उन्होंने निठारी कांड की रेखाकिंत करते हुए कहा की न्यायपालिका चाहे तो व्यक्तियों को बरी कर दे। किन्तु मीडिया अपराध ने लिप्त व्यक्तियों को कभी बरी नहीं करता है। किसी का चरित्र हनन करना मीडिया का कार्य नहीं है। परन्तु असावधानी वश ऐसा हो जाता है। यही पर मीडिया ट्रायल की भूमिका संदिगघ हो जाती है। मीडिया की समाज के प्रति जिम्मेदारी है कि मीडिया का दुरूप्रयोग नहीं होना चाहिए। मीडिया को खुद थानेदार एवं न्यायधीश ना बनकर एक साकारात्मक भूमिका निभाकर समाज को एक नई दिशा देनी चाहिए।


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