लेकिन जिस तरह शराब और वेश्यावृत्ति को बुरा माने जाने के बावजूद, एवं इन बातों को सामाजिक मान्यता न मिलने के बावजूद, ये समाज में बने रहे उसी तरह समलिंगी लोग भी हजारों साल से विभिन्न रूपों में समाज में बने रहे हैं. इतना ही नहीं, बुरा समझे जाने के बावजूद जब तक शराबखाने एवं वेश्यावृत्ति के अड्डे समाज से हट कर अपने निर्दिष्ट स्थान पर रहे और जब तक वे आम जनता के लिये सरदर्द न बने तब तक समाज उनको सहन करता रहा, उसी तरह तमाम तरह के समलैंगिक समूहों को भी बुरा समझने के बावजूद सारी दुनियां में समाज झेलता आया है!प्राचीन भारत से जो मिथुन मूर्तियां बची हैं उनमे भी यदा कदा समलैंगिक संबंधो की ओर इशारा किया गया है, लेकिन उनको सामाजिक मान्यता नहीं दी गई है. यही हिसाब लगभग सब राष्टों के इतिहास में दिखता है: जब तक समलैंगिक लोग समाज के रास्ते आडे नहीं आये, तब तक समाज उनको बर्दाश्त करता रहा. लेकिन जिस तरह शराबखोरी एवं वेश्यावृत्ति को सामाजिक मान्यता नहीं मिली उसी तरह समलैगिकता को भी सामाजिक रूप से मान्य एक कृत्य नहीं समझा गया!
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