'No candle looses its light while lighting up another candle'So Never stop to helping Peoples in your life.

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Apr 7, 2012

=> पहले 'खुद' तब "खुदा"

                                     भय से ही लोग मंदिर में जाते हैं , की कहीं हमारे साथ गड़बड़ न हो जाये !   हे भगवान, मुझे और मेरे परिवार वालों को दुखों से बचाना, कष्टों से उबरना तथा सुख की बारिश करना..........है न बुद्धूपन .......अरे यह तो किसी अजनवी से रूपये माँगने के जैसा है!  पहले  ईश्वर  को जानो- पहचानो, ज़रा मेल-जोल करो ठीक से समझो ...तब तो वह तुम्हे "लिफ्ट" देगा ! हमने 'उसे' पहचाना नहीं और चल दिए सुख माँगने, चल दिए भक्त बनने....कोई फायदा नहीं है ऐसे फरियाद से .......नहीं सुनेगा 'वो' तुम्हे इस तरह........
                                       सवाल है की पाया कैसे जय ईश्वर को? पाना है तो खोना पड़ेगा ! समय देना पड़ेगा , और हा पोंगा पंडित, ढोंगी बाबा और झूठे मौलानाओं से तौबा करना पड़ेगा ! पत्थर के सामने न झुककर, मजार के सामने मत्था न टेक कर हमें  'खुद'  के सामने झुकना पड़ेगा ! पहले 'खुद' तब "खुदा" ! अल्लाह, भगवान, ईश्वर, खुदा ने हमें जिस मिट्टी से बनाया है उसकी कीमत समझनी होगी......मगर हम तो इतने अभिमानी हैं की खुद मिट्टी से मूर्तियों का निर्माण करते हैं और खुद उसके सामने घंटों बैठ कर ये फरियाद करते हैं की - हे भगवान मेरे दुखों को दूर कर दे ! खुदा भी हँसता होगा हमारी नासमझी पर , की कैसे मुर्ख हैं ये सारे मनुष्य? एक शेर याद आ रहा है -

                                   किसकी कीमत समझूं ऐ खुदा तेरे इस जहां में 
                             "तू" मिट्टी से इंसान बनता हैं और वो मिट्टी से "तुझे"

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