Meerut। खाकी पर लागू नहीं नियम। सडक पर चलने वाले वाहनचालकों को नंबरप्लेट.गाडी के दस्तावेजों के नाम पर परेशान करने वाले खाकीधारक हवा में उडा रहे हैं सडक पर चलने के नियम।
सडक पर चलने से पहले आम आदमी पुलिस के डर से अपने वाहनों के समस्त दस्तावेज साथ लेकर चलता है और यदि भूल से भी हैलमेट न हो या बाईक या चारपहिया गाडी का कोई दस्तावेज भूल जाये या गाडी की नंबरप्लेट से कोई एक भी अक्षर मिटा हुआ हो तो शुरू हो जाता है खाकी का खेल या तो वाहनचालक का चालान काटा जायेगा या फिर 10, 20, 50, 100 रूपये जो मिले उनसे पुलिसवाले काम चला लेते हैं। सडक पर चलने वाले वाहनचालकों पर तो आरटीओ के नियम तो लागू हैं पर शायद परिक्षितगढ पुलिस पर नहीं। मेरठ जनपद पश्चििमी उत्तरप्रदेश का सबसे बढा जनपद है। और क्राईम के मामले में भी मेरठ का नाम स्वर्णिम अक्षरों में है। जनपद के कप्तान द्वारा सख्त पुलिसिंग के आदेश हैं मगर इन सभी आदेशों के बाद भी परिक्षितगढ पुलिस के कानों पर जूं रेंगती दिखाई नहीं देती किठौर क्षेत्र के थाना परिक्षितगढ में
पुलिस जीप में न ही नंबरप्लेट है और जीप की खस्ता हालत देखते हुए यह कहते हुए कोई हर्ज नहीं है कि शायद एक पैदल चलने वाला इंसान अगर दौड लगाये तो जीप को पीछे छोड देगा आखिर ऐसे खस्ताहाल वाहनों द्वारा पुलिस किस प्रकार क्राईम कंट्रोल कर पायेगी। घटना घटने के घंटो बाद पुलिस पहुंचती है और यदि इसका कारण पूछा जाये तो ककहते हैं कि सूचना नहीं थी जबकि उसका असल कारण सिर्फ और सिर्फ जर्जर जीप और थाने के वाहन ही है।
जवाब दीजिये कप्तान साहब?
जनपद या देहात क्षेत्र में आपके आदेशों के बाद सप्ताह में कई बार चैकिंग अभियान चलाये जाते हैं लेकिन उन चैकिंगों के नाम पर आप ही के विभाग के अधिनस्थ दारोगा जी या थानाप्रभारी चैकिंग के नाम पर सिर्फ अपनी जेब गर्म करने का काम करते हैं जिससे राजस्व को चपत लगती है सडक पर चलने वाले वाहनस्वामीयों की जेब पर चैकिंग के नाम पर जो डाका डाला जाता है और कागज न होने पर नंबरप्लेट न होने पर जो कार्यवाही की जाती है क्या वही नियम आपकी पुलिस पर लागू नहीं है। - by Sanchit Arora, Mawana
सडक पर चलने से पहले आम आदमी पुलिस के डर से अपने वाहनों के समस्त दस्तावेज साथ लेकर चलता है और यदि भूल से भी हैलमेट न हो या बाईक या चारपहिया गाडी का कोई दस्तावेज भूल जाये या गाडी की नंबरप्लेट से कोई एक भी अक्षर मिटा हुआ हो तो शुरू हो जाता है खाकी का खेल या तो वाहनचालक का चालान काटा जायेगा या फिर 10, 20, 50, 100 रूपये जो मिले उनसे पुलिसवाले काम चला लेते हैं। सडक पर चलने वाले वाहनचालकों पर तो आरटीओ के नियम तो लागू हैं पर शायद परिक्षितगढ पुलिस पर नहीं। मेरठ जनपद पश्चििमी उत्तरप्रदेश का सबसे बढा जनपद है। और क्राईम के मामले में भी मेरठ का नाम स्वर्णिम अक्षरों में है। जनपद के कप्तान द्वारा सख्त पुलिसिंग के आदेश हैं मगर इन सभी आदेशों के बाद भी परिक्षितगढ पुलिस के कानों पर जूं रेंगती दिखाई नहीं देती किठौर क्षेत्र के थाना परिक्षितगढ में
पुलिस जीप में न ही नंबरप्लेट है और जीप की खस्ता हालत देखते हुए यह कहते हुए कोई हर्ज नहीं है कि शायद एक पैदल चलने वाला इंसान अगर दौड लगाये तो जीप को पीछे छोड देगा आखिर ऐसे खस्ताहाल वाहनों द्वारा पुलिस किस प्रकार क्राईम कंट्रोल कर पायेगी। घटना घटने के घंटो बाद पुलिस पहुंचती है और यदि इसका कारण पूछा जाये तो ककहते हैं कि सूचना नहीं थी जबकि उसका असल कारण सिर्फ और सिर्फ जर्जर जीप और थाने के वाहन ही है।
जवाब दीजिये कप्तान साहब?
जनपद या देहात क्षेत्र में आपके आदेशों के बाद सप्ताह में कई बार चैकिंग अभियान चलाये जाते हैं लेकिन उन चैकिंगों के नाम पर आप ही के विभाग के अधिनस्थ दारोगा जी या थानाप्रभारी चैकिंग के नाम पर सिर्फ अपनी जेब गर्म करने का काम करते हैं जिससे राजस्व को चपत लगती है सडक पर चलने वाले वाहनस्वामीयों की जेब पर चैकिंग के नाम पर जो डाका डाला जाता है और कागज न होने पर नंबरप्लेट न होने पर जो कार्यवाही की जाती है क्या वही नियम आपकी पुलिस पर लागू नहीं है। - by Sanchit Arora, Mawana
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