-दो आरोपियों को गिरफ़्तार न करना,
-घटना में प्रयुक्त पिस्टल के लाइसेंस को निरस्त न करना
-मेडिकल रिपोर्ट को दोबारा कराना बन रही है मुख्य वजह
त्रिनाथ मिश्र।
मेरठ। शास्त्रीनगर रेप कांड के बाद विरोध् की ज्वाला धधक रही है। मन में उठने वाली यह चिंगारी कभी भी बड़ा रूप ले सकती है। दिल्ली कांड के बाद से लोगों के मन में पुलिस व प्रशासन के प्रति विश्वास खत्म हो गया है। आक्रोशित लोगों को संतुष्ट कर पाने में प्रशासनिक अमला नाकाम हो रहा है। सपफेदपोश कददावर नेताओं के बड़बोलेपन के आगे आरोपियों की करतूते बहुत छोटी बन गई है। खरीद फरोख्त व सेटिंग का आरोप लगाते हुए जनता प्रदर्शन कर रही है। बड़ा सवाल ये है कि आखिर इस तरह की घटनाओं पर निष्पक्ष कार्रवाई क्यों नहीं हो पाती?दिल्ली की दामिनी केस के बाद मेरठ में इस तरह के मामले का होना कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि मानवता मर गई है। चलती गाड़ी में गैंगरेप का यह घिनौना और शर्मशार कर देने वाला कृत्य ऐसे व्यक्तियों के समुह द्वारा किया गया जो खुद को समाज का सेवादार मानते है। हवस मिटाने के लिए ये वहशी दरिंदे किसी भी हद तक जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते और विरोध् करने पर घर में घुसकर जान से मारने की ध्मकी देते है। सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि इतना सब होने के बावजूद थाने पर जाने पर पीडित को खाकी के सौतेल व्यवहार का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
दूसरों की तरफ उंगली उठाने वाले सपफेदपोश जनप्रतिनिध किसी भी विपक्षी मामले पर जमकर नारेबाजी ड्रामेबाजी और उल्टपफेर करते है। मगर वहीं ज्ञापन सौंपने के शौकिन इन नेताओं के घर का मामला फंसते ही चुप्पी साध् लेते है। क्या अपने घर के लोगों का नाम प्रकाश में आते ही इन नेताओं की मानवता को लकवा मार जाता है? इनके द्वारा ऐसे ही दूसरे मामलों पर किया गया विरोध् दिखावा मान लिया जाए तो बुरा नहीं होगा। आज एक बेटी की इज्जत गयी है कल दूसरे की बारी होगी, अगर हम एक न हुए। अगर हमने विरोध् न किया तो अमित भड़ाना जैसा कोई अन्य दरिंदा अपने अन्य कददावर साथियों के साथ किसी की बहन, बेटी व बहू को अपने वहशीपन का शिकार बना सकता है।
सबूत मिटाना चाह रही है पुलिस-
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