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May 29, 2014

=> वेदना कि सिहरन



  • रूपा श्री शर्मा, झारखण्ड 
वेदना कि सिहरन से जब सिसकियाँ पनपती होंगीं
अनगिनत इक्छाओं कि आंधियां झुलसती होंगीं
सह तो जाती होंगीं हर सितम हर वेदना पर
क्या बेटीयों कि आत्मा नही कलपती होंगी
जन्म ले कर जहाँ पलती है बढती है छोड़
उस घरको साजन का घर सहेजती होंगीं
कभी दहेज़ कि खातिर जब कुचला जाता होगा इन्हे
क्या ऐसे में भी जीवन कि बगिया महकती होंगीं
एक हक़ीक़त ये भी होती है बेटिया चुप -चाप रोती हैं
पर कैसा लगता होगा इन्हे जब दहेज़ के लिए ये झुलसती होंगी ??????
व दहेज़ के लिए ये झुलसती होंगी ??????

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