जय प्रकाश त्रिपाठी
रूसी और भारतीय नागरिकों की आनुवंशिक जड़ें एक ही हैं| 8-9 हजार साल पहले दोनों देशों के लोगों के जीनोटाइप पूरी तरह से मेल खाते थे| यह परिणाम हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के जैव रसायन, जैव भौतिकी और चिकित्सा केन्द्र के अनुसंधान कार्यों से प्राप्त हुए हैं|अगर इन परिणामों की पुष्टि अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी हो जाएगी तो इसका मतलब यह होगा कि कभी तो रूसी और भारतीय एक ही जाति का हिस्सा थे| रूसी इतिहासकार और प्राच्यविद् इवान इवान्त्स्की ने रेडियो रूस को दिए अपने एक साक्षात्कार में बताया कि इस जाति का पैतृक घर रूस के एकदम उत्तर में था| वह आगे कहते हैं: 4000 साल पहले प्राचीन स्लाव दक्षिण उराळ की तरफ आये थे और उसके चार सौ साल बाद वह भारत की तरफ रवाना हुए थे, जहां आज भी उसी आनुवंशिक गुणों के लगभग 10 करोड़ उनके वंशज रह रहे हैं| स्लाव जाति के जीनोटाइप का किसी भी प्रकार का स्वांगीकरण नहीं हुआ है| और अभी तक स्लाव जीन से पूरी तरह से मेल खाने वाले जीन वहाँ पाए जाते हैं| आर्यों की एक और लहर ई.पू. तीसरी सहस्राब्दी में मध्य एशिया से पूर्वी ईरान को रवाना हुयी थी और वह ‘ईरानी आर्य’ कहलाए थे|"ऋग्वेद" के एक श्लोक में कहा गया है कि सप्तऋषि नक्षत्र बिलकुल भारतीयों के सिर के ऊपर है| काफी समय बाद यूरोप वासियों ने इस नक्षत्र को ‘बिग डिपर’ का नाम दिया| यहाँ पर दिलचस्प बात यह है कि अगर खगोल विज्ञान की दृष्टि से भारत में रह कर इस नक्षत्र को देखने की कोशिश की जाए तो यह क्षितिज के कहीं ऊपर दिखाई देता है या कुछ जगहों से बिलकुल भी दिखाई नहीं देता है| आर्कटिक सर्कल के पार वह जगह है जहां से सप्तऋषि नक्षत्र सीधे भूमि के ऊपर दिखाई देता है| इसका अर्थ यह हुआ कि वेद ग्रंथों के मंचन के समय भारतीय उत्तरी ध्रुव के पास कहीं रहते थे|
इस सिद्धांत की पुष्टि कुछ अन्य तथ्य भी करते हैं| कई भारतीय लोकगीत यह दावे करते हैं कि देवताओं के दिन और रात छह महीने लंबे होते हैं| इसे अक्सर एक रंगीन अतिशयोक्ति माना जाता है| लेकिन यह पूरी तरह से भौगोलिक वास्तविकताओं पर आधारित हो सकता है| रूस के एकदम उत्तर में ध्रुवीय दिन और रात होते हैं, जो छह महीने लंबे होते हैं| संस्कृत से उद्धरित रूस की नदियों के नाम भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि कभी तो रूस में भारतीय रहते थे| रूस के कीरव इलाके में नदी सूर्या है और रूस की नदी वोल्गा की सबसे बड़ी उपनदी का नाम कामा है जो प्रेम के देवता कामदेव को समर्पित है|इस सिद्धांत के विरोधी स्लाव और भारतीयों के बीच दिखाई देने वाले मानवविज्ञान मतभेदों की तरफ इशारा करते हैं| लेकिन हिंदुस्तान में रहने वाले लोगों में अभी भी ऐसे लोग हैं जिनके रूसी होने का भ्रम होता है| वर्तमान पाकिस्तान में स्थित दक्षिणी हिंदूकुश के पहाड़ों में रहने वाली कलश जनजाति के लोगों और रूसियों में अंतर करना लगभग असंभव है| इस जनजाति के लोगों की त्वचा गोरी, बाल हलके भूरे तथा अधिकतर की आंखों का रंग हल्का हरा होता है| यह उन्हीं आर्यों के वंशज हो सकते हैं जो कभी तो रूस से भारत आये थे|आनुवंशिक वैज्ञानिकों के शोधकार्यों से पता चलता है कि आधुनिक भारतीयों के पूर्वज आर्य थे| यह वही आर्य थे जो अपने अर्जन को रथों पर लाद कर उत्तरी रूस से दक्षिण की तरफ नए घर की तलाश में रवाना हुए थे| अभी तक केवल इस नए घर की तलाश के लिये निकलने का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है|
रूसी और भारतीय नागरिकों की आनुवंशिक जड़ें एक ही हैं| 8-9 हजार साल पहले दोनों देशों के लोगों के जीनोटाइप पूरी तरह से मेल खाते थे| यह परिणाम हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के जैव रसायन, जैव भौतिकी और चिकित्सा केन्द्र के अनुसंधान कार्यों से प्राप्त हुए हैं|अगर इन परिणामों की पुष्टि अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी हो जाएगी तो इसका मतलब यह होगा कि कभी तो रूसी और भारतीय एक ही जाति का हिस्सा थे| रूसी इतिहासकार और प्राच्यविद् इवान इवान्त्स्की ने रेडियो रूस को दिए अपने एक साक्षात्कार में बताया कि इस जाति का पैतृक घर रूस के एकदम उत्तर में था| वह आगे कहते हैं: 4000 साल पहले प्राचीन स्लाव दक्षिण उराळ की तरफ आये थे और उसके चार सौ साल बाद वह भारत की तरफ रवाना हुए थे, जहां आज भी उसी आनुवंशिक गुणों के लगभग 10 करोड़ उनके वंशज रह रहे हैं| स्लाव जाति के जीनोटाइप का किसी भी प्रकार का स्वांगीकरण नहीं हुआ है| और अभी तक स्लाव जीन से पूरी तरह से मेल खाने वाले जीन वहाँ पाए जाते हैं| आर्यों की एक और लहर ई.पू. तीसरी सहस्राब्दी में मध्य एशिया से पूर्वी ईरान को रवाना हुयी थी और वह ‘ईरानी आर्य’ कहलाए थे|"ऋग्वेद" के एक श्लोक में कहा गया है कि सप्तऋषि नक्षत्र बिलकुल भारतीयों के सिर के ऊपर है| काफी समय बाद यूरोप वासियों ने इस नक्षत्र को ‘बिग डिपर’ का नाम दिया| यहाँ पर दिलचस्प बात यह है कि अगर खगोल विज्ञान की दृष्टि से भारत में रह कर इस नक्षत्र को देखने की कोशिश की जाए तो यह क्षितिज के कहीं ऊपर दिखाई देता है या कुछ जगहों से बिलकुल भी दिखाई नहीं देता है| आर्कटिक सर्कल के पार वह जगह है जहां से सप्तऋषि नक्षत्र सीधे भूमि के ऊपर दिखाई देता है| इसका अर्थ यह हुआ कि वेद ग्रंथों के मंचन के समय भारतीय उत्तरी ध्रुव के पास कहीं रहते थे|
इस सिद्धांत की पुष्टि कुछ अन्य तथ्य भी करते हैं| कई भारतीय लोकगीत यह दावे करते हैं कि देवताओं के दिन और रात छह महीने लंबे होते हैं| इसे अक्सर एक रंगीन अतिशयोक्ति माना जाता है| लेकिन यह पूरी तरह से भौगोलिक वास्तविकताओं पर आधारित हो सकता है| रूस के एकदम उत्तर में ध्रुवीय दिन और रात होते हैं, जो छह महीने लंबे होते हैं| संस्कृत से उद्धरित रूस की नदियों के नाम भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि कभी तो रूस में भारतीय रहते थे| रूस के कीरव इलाके में नदी सूर्या है और रूस की नदी वोल्गा की सबसे बड़ी उपनदी का नाम कामा है जो प्रेम के देवता कामदेव को समर्पित है|इस सिद्धांत के विरोधी स्लाव और भारतीयों के बीच दिखाई देने वाले मानवविज्ञान मतभेदों की तरफ इशारा करते हैं| लेकिन हिंदुस्तान में रहने वाले लोगों में अभी भी ऐसे लोग हैं जिनके रूसी होने का भ्रम होता है| वर्तमान पाकिस्तान में स्थित दक्षिणी हिंदूकुश के पहाड़ों में रहने वाली कलश जनजाति के लोगों और रूसियों में अंतर करना लगभग असंभव है| इस जनजाति के लोगों की त्वचा गोरी, बाल हलके भूरे तथा अधिकतर की आंखों का रंग हल्का हरा होता है| यह उन्हीं आर्यों के वंशज हो सकते हैं जो कभी तो रूस से भारत आये थे|आनुवंशिक वैज्ञानिकों के शोधकार्यों से पता चलता है कि आधुनिक भारतीयों के पूर्वज आर्य थे| यह वही आर्य थे जो अपने अर्जन को रथों पर लाद कर उत्तरी रूस से दक्षिण की तरफ नए घर की तलाश में रवाना हुए थे| अभी तक केवल इस नए घर की तलाश के लिये निकलने का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है|
-('रेडियो रूस' से साभार)
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