- रुपाश्री शर्मा, गुमला, झारखण्ड
माँ गंगा की कहानी, माँ गंगा की जुबानी ..............
मुझको विधवंसिनी बता रहा है
देखो मनुस्य आज कितना चिल्ला रहा है
कह रहा मैं कर रही मनमानी
काल बन बैठा मेरा ये पानी
सारे ही तट -बंध टूट गए
प्रसाशन के पशीने छूट गए
देखो मनुस्य आज कितना चिल्ला रहा है
कह रहा मैं कर रही मनमानी
काल बन बैठा मेरा ये पानी
सारे ही तट -बंध टूट गए
प्रसाशन के पशीने छूट गए
कह रहा मनुष्य
पानी नही है ये तबाही है तबाही
प्रकृति को सुनाई नहीं देती मासूमो की दुहाई
नदियों के इस बर्ताव से मानवता घायल हो जाती है
देखो नदियां बरसात के मौसम में पागल हो जाती है
पानी नही है ये तबाही है तबाही
प्रकृति को सुनाई नहीं देती मासूमो की दुहाई
नदियों के इस बर्ताव से मानवता घायल हो जाती है
देखो नदियां बरसात के मौसम में पागल हो जाती है
ये सुन मैं मुस्कुरा रही और मांग रही आपसे जवाब आप बताओ ऐसा जुल्म क्यों ??
मुझे क्या मेरी जमीन छीनने का डर सालता नही ?
क्या मनुष्य मेरी निर्मल धारा में कूड़ा -करकट डालता नही ?
धार्मिक आस्थाओं का कचरा मुझे झेलना पड़ता नहीं ?
जिन्दा से लेकर मुर्दों का अवशेष अपने भीतर ठेलना पड़ता नही ?
जब मेरी धाराओं में आकर मिलता है शहरी नालों का बदबूदार पानी
तब किसी को दिखाई ना देता है मनुष्य की घृणित मनमानी
तुम निरंतर डाले जा रहे हो मुझमे औद्योगिक विकाश की कबाड़
और फिर पूछते हो जाने कैसे आ जाती है बाढ़
मानव की मनमानी जब अपनी हदें देती हैं
तो प्रकृति भी अपनी शीलता को खुंटी पर टाँग देती है
मेरी ये निर्मल धारा जीवनदायी है
मैंने युगों से खेतों को सींच कर मानव की भूख मिटाई है
और मानव स्वभाव से ही आज आततायी है
मनुष्य ने निरंतर प्रकृति का शोषण किया
अपने ओझे स्वार्थों का पोषण किया
मेरी धाराओं को संकुचित कर शहर बसाया
धयान से देखिये नदी शहर में घुशी या शहर नदी में घुश आया
जिसे बाढ़ का नाम दे कर मनुष्य हैरान परेशान है
दरअसल वो मेरा (गंगा ) नेचुरल सफाई अभियान है
ये तो गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है
ये तो गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है।
क्या मनुष्य मेरी निर्मल धारा में कूड़ा -करकट डालता नही ?
धार्मिक आस्थाओं का कचरा मुझे झेलना पड़ता नहीं ?
जिन्दा से लेकर मुर्दों का अवशेष अपने भीतर ठेलना पड़ता नही ?
जब मेरी धाराओं में आकर मिलता है शहरी नालों का बदबूदार पानी
तब किसी को दिखाई ना देता है मनुष्य की घृणित मनमानी
तुम निरंतर डाले जा रहे हो मुझमे औद्योगिक विकाश की कबाड़
और फिर पूछते हो जाने कैसे आ जाती है बाढ़
मानव की मनमानी जब अपनी हदें देती हैं
तो प्रकृति भी अपनी शीलता को खुंटी पर टाँग देती है
मेरी ये निर्मल धारा जीवनदायी है
मैंने युगों से खेतों को सींच कर मानव की भूख मिटाई है
और मानव स्वभाव से ही आज आततायी है
मनुष्य ने निरंतर प्रकृति का शोषण किया
अपने ओझे स्वार्थों का पोषण किया
मेरी धाराओं को संकुचित कर शहर बसाया
धयान से देखिये नदी शहर में घुशी या शहर नदी में घुश आया
जिसे बाढ़ का नाम दे कर मनुष्य हैरान परेशान है
दरअसल वो मेरा (गंगा ) नेचुरल सफाई अभियान है
ये तो गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है
ये तो गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है।
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