- अशोक रावत
हलफ़ तो सब उठाते हैं वफ़ा कोई नहीं करता।
उसे आकाश में उड़ने के सपने तो दिखाते हैं,
मगर पिंजरे से पंछी को रिहा कोई नहीं करता।
दुआ में हाथ तो अब भी उठाते हैं मेरे अपने,
मेरे हक़ में मगर दिल से दुआ कोई नहीं करता।
ये कारोबार में उलझे हुए लोगों की दुनिया है,
निगाहें फेर लेते है, दया कोई नहीं करता।
ज़रा सी बात हो सब दिल में लेके बैठ जाते हैं,
किसी से अब यहाँ शिकवा-गिला कोईनहीं करता।
सभी को एक जन्नत चाहिए अपने लिए लेकिन,
ज़रूरी फर्ज़ हैं उनको अदा कोई नहीं करता।
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