- अशोक रावत
सियासत के खिलाड़ी आज दंगों के भरोसे हैं।
भरोसा बाजपेयी, लोहिया,गाँधी पे किसको है,
नई पीढ़ी के पैगम्बर, दबंगों के भरोसे हैं।
बदलते क्यों नहीं हैं लोग इस गंदी सियासत को,
जो पैंसठ साल से लुच्चे-लफ़ंगों के भरोसे हैं।
भरोसा मत करो इन बेइमानों की नसीहत पर,
हमारे ख़्वाब आज़ादी के रंगों के भरोसे हैं।
उधर बेशर्म लोगों की फरेबों से भरी दुनिया,
इधर ये नौजवाँ हैं जो उमंगों के भरोसे हैं।
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