- रुपाश्री शर्मा
आधी औरत होने के कितने मायने है और कितने नहीं, यह सवाल ही अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है। मगर इस नयी सदी की जिस औरत को सम्पूर्ण औरत का दर्जा देकर तमाम तरह के स्लोगन से सुशोभित कर और श्रेष्ठता के तमाम तमगों से नवाज कर तुम्हारा यह मर्यादा पुरुष समाज जिस तरह महिमा मंडित कर रहा है, उससे मैं यानि की आधी औरत केवल इन स्लोगन से तो पूर्ण होने से रही।
तुम मेरे इस आधी होने के पर्याय भर को ही पूर्ण मान कर अपने सम्तुल्य होने का दम्भ भर रहे हो .....जानते हो न मैं यानी की एक आधी औरत और तुम इस नयी सदी के जन नायक , मर्यादित गाथाओ से लवरेज ,उन वीर सूरमाओं के अग्रणी जिनमे न जाने कितने ही इतिहास दफ़न हुए यह तुम हो .......
सृस्टि के आरम्भ से लेकर अन्नंत तक अगर किसी सबसे सुन्दर कल्पना को साकार रूप में परिवर्तित किया गया और समय- समय पर उसकी व्याख्या कर उसकी अवधारणा को उसके विस्तृत रूप में पिरोया गया तो वह एक मात्र औरत ही है। ऐसा सिर्फ मेरा ही नहीं तुम्हारा भी कहना है ।
लेकिन अब एक सवाल खड़ा होता है की मैं कौन ? और तुम कौन ? ......इस मैं और तुम के बीच ही सृष्टि की सारी परिकल्पना घूमती है। जनम से लेकर मृत्यु तक .....आरम्भ से अनंत तक ......!
इस मैं और तुम की परिभाषा के ताने - बाने में बुनी इस सृस्टि की रचना ही इतनी विस्तृत है, की कभी यह समझ ही नहीं पायी की मैं कहाँ ? रही और तुम कहाँ ?............
मैं यानी की एक औरत आधी से आधी तक तुम्हारी उस सदी से लेकर इस सदी तक और तुम एक मात्र पुरुष प्रतिभा के धनी ...मेरे पालनहार ,मेरे अन्नदाता ,मेरे स्वामी ...यह तुम ही हो और मैं सिर्फ एक आधी औरत ......अपने में भी पूर्ण नहीं ........हां वही एक औरत जो आदि -आदि युगो से भी आधी औरत थी और आज भी सिर्फ एक आधी औरत ही है ....उस सदी की या तुम्हारी इस नयी सदी की क्या फर्क पड़ता है, सदिया बदलने से?? रही तो मैं सिर्फ औरत ही ना और वह भी सिर्फ आधी होने का दर्द लिए ......सिर्फ तुम्हारी दासी भर ..................मैंने बदलती सदियों से अपने आपको अगर जाना है तो सिर्फ, इतना भर की मैं घर -समाज की वही एक औरत भर रही जहाँ उसके सम्पूर्ण जीवन भर की परिभाषा मात्र जननी भर के आगे कुछ भी नहीं और औरत का यह रूप सिर्फ एक आधी औरत का ही है। एक संपूर्ण औरत का नहीं ।
क्योकि मैं जननी भी हूँ तो उसके जनक दाता भी सिर्फ तुम ही हो क्योकि तुम ही तो तय करोगे की मेरी कोख से जन्म लेने वाला कोई पुरुष होगा या फिर वही एक आधी औरत , मेरे ही जैसी कोई छाया । अब तुम ही बताओ कितनी संपूर्ण हूँ मैं, अपने आप में?? .सम्पूर्ण तो तुम हो अपने आप में मेरे स्वामी ,मेरे जीवन दाता ,मेरे पालनहार ....आदि -आदि युगो से तुम्हे इसी रूप में तो देखती आ रही हूँ और मैं तो आज भी तुम्हारी इस नयी सदी में भी आधी औरत ही हूँ ।
और आधा कभी पूरा होने का परिचायक नहीं होता फिर चाहे तुम मुझ पर आधुनिकता के तमाम स्लोगन लगा मुझे इस नयी सदी की पूरी ही औरत क्यों ना दिखाते रहो और फिर चाहे यह ही क्यों न कहते रहो सृष्टि और सदी की रचना तो मेरे ही चारो और घूमती है । मगर इतना सब तो मैं भी जानती ही हूँ । असल में तुम्हारी यह सृस्टि और सदियाँ मेरे चारो और नहीं बल्कि मैं एक आधी औरत ही तुम्हारी इस सृस्टि और सदी के चारो और घूम रही हूँ अपने आपको एक पूरी औरत के रूप में स्थापित करने को ... । और अपने आपको स्थापित करने के इसी क्रम में मैं दिनों दिन कमतर भी हो रही हूँ .... । मैं आखिर हूँ ही कहाँ?...कही भी तो नहीं और तुम मुझे इस सदी की औरत को ना जाने क्या-क्या सम्बोधनों से घर ,परिवार और समाज में चरम पर रखते हो और अपने इस फलसफे पर की इस सदी की नारी तमाम पुरुषवादी सोच और इस दायरे से कही मिलो आगे है । ......और तुम्हारे इस कथन पर मैं बस हँस भर देती हूँ । तुम्हारे दिए इस तमगे पर की पुरुष एकाधिकार की लड़ाई में तुम कितनी ही साफगोई से इस आधी औरत के जख्मो को भरने में लगे हो ...........आओ जरा मेरे साथ आज मैं तुम्हे दिखाती हूँ ,इस सदी की उस आधी औरत से मिलवाती हूँ, जिसे तुम घर ,परिवार ,समाज , सृष्टि और नयी सदी का जनक कहकर बार-बार सम्बोधित करते आ रहे हो ......देखो तुम्हारी इस नयी सदी में भी आधी की आधी औरत ही है.... देखो जरा उस एक आधी औरत को जिसे तुम बार-बार चीख -चिल्लाकर इस नयी सदी की सबसे ताकतवर होने का दर्जा दे कर पूरी सदी को ही भर्मित करने पर आमदा हो। जाहिर है यह सब सुनना तुम्हारे लिए उतना अचंभित करने वाला न हो क्योकि इस सब ताने-बाने को बुना तो तुमने ही है ना, और इस सबको बुनने में तुम्हे भी सदियाँ लगी है .....एक आधी औरत को आकड़ो में पिरो पूरा दिखiने में तुमने सृष्टि के इस इतिहास को कई बार बनाया भी है ,और बिगाड़ा भी । ..........मगर इतिहास बदले ,सदियाँ भी बदली मगर मैं फिर भी वही आधी की आधी औरत ........देख लो तुम्हारी इस नयी सदी की उस आधी औरत को जिसे तुम सम्पूर्ण ताकतवर होने के तमगे से नवाज रहे हो .........देखो यह मैं ही हूँ .......
तुम मेरे इस आधी होने के पर्याय भर को ही पूर्ण मान कर अपने सम्तुल्य होने का दम्भ भर रहे हो .....जानते हो न मैं यानी की एक आधी औरत और तुम इस नयी सदी के जन नायक , मर्यादित गाथाओ से लवरेज ,उन वीर सूरमाओं के अग्रणी जिनमे न जाने कितने ही इतिहास दफ़न हुए यह तुम हो .......
सृस्टि के आरम्भ से लेकर अन्नंत तक अगर किसी सबसे सुन्दर कल्पना को साकार रूप में परिवर्तित किया गया और समय- समय पर उसकी व्याख्या कर उसकी अवधारणा को उसके विस्तृत रूप में पिरोया गया तो वह एक मात्र औरत ही है। ऐसा सिर्फ मेरा ही नहीं तुम्हारा भी कहना है ।
लेकिन अब एक सवाल खड़ा होता है की मैं कौन ? और तुम कौन ? ......इस मैं और तुम के बीच ही सृष्टि की सारी परिकल्पना घूमती है। जनम से लेकर मृत्यु तक .....आरम्भ से अनंत तक ......!
इस मैं और तुम की परिभाषा के ताने - बाने में बुनी इस सृस्टि की रचना ही इतनी विस्तृत है, की कभी यह समझ ही नहीं पायी की मैं कहाँ ? रही और तुम कहाँ ?............
मैं यानी की एक औरत आधी से आधी तक तुम्हारी उस सदी से लेकर इस सदी तक और तुम एक मात्र पुरुष प्रतिभा के धनी ...मेरे पालनहार ,मेरे अन्नदाता ,मेरे स्वामी ...यह तुम ही हो और मैं सिर्फ एक आधी औरत ......अपने में भी पूर्ण नहीं ........हां वही एक औरत जो आदि -आदि युगो से भी आधी औरत थी और आज भी सिर्फ एक आधी औरत ही है ....उस सदी की या तुम्हारी इस नयी सदी की क्या फर्क पड़ता है, सदिया बदलने से?? रही तो मैं सिर्फ औरत ही ना और वह भी सिर्फ आधी होने का दर्द लिए ......सिर्फ तुम्हारी दासी भर ..................मैंने बदलती सदियों से अपने आपको अगर जाना है तो सिर्फ, इतना भर की मैं घर -समाज की वही एक औरत भर रही जहाँ उसके सम्पूर्ण जीवन भर की परिभाषा मात्र जननी भर के आगे कुछ भी नहीं और औरत का यह रूप सिर्फ एक आधी औरत का ही है। एक संपूर्ण औरत का नहीं ।
क्योकि मैं जननी भी हूँ तो उसके जनक दाता भी सिर्फ तुम ही हो क्योकि तुम ही तो तय करोगे की मेरी कोख से जन्म लेने वाला कोई पुरुष होगा या फिर वही एक आधी औरत , मेरे ही जैसी कोई छाया । अब तुम ही बताओ कितनी संपूर्ण हूँ मैं, अपने आप में?? .सम्पूर्ण तो तुम हो अपने आप में मेरे स्वामी ,मेरे जीवन दाता ,मेरे पालनहार ....आदि -आदि युगो से तुम्हे इसी रूप में तो देखती आ रही हूँ और मैं तो आज भी तुम्हारी इस नयी सदी में भी आधी औरत ही हूँ ।
और आधा कभी पूरा होने का परिचायक नहीं होता फिर चाहे तुम मुझ पर आधुनिकता के तमाम स्लोगन लगा मुझे इस नयी सदी की पूरी ही औरत क्यों ना दिखाते रहो और फिर चाहे यह ही क्यों न कहते रहो सृष्टि और सदी की रचना तो मेरे ही चारो और घूमती है । मगर इतना सब तो मैं भी जानती ही हूँ । असल में तुम्हारी यह सृस्टि और सदियाँ मेरे चारो और नहीं बल्कि मैं एक आधी औरत ही तुम्हारी इस सृस्टि और सदी के चारो और घूम रही हूँ अपने आपको एक पूरी औरत के रूप में स्थापित करने को ... । और अपने आपको स्थापित करने के इसी क्रम में मैं दिनों दिन कमतर भी हो रही हूँ .... । मैं आखिर हूँ ही कहाँ?...कही भी तो नहीं और तुम मुझे इस सदी की औरत को ना जाने क्या-क्या सम्बोधनों से घर ,परिवार और समाज में चरम पर रखते हो और अपने इस फलसफे पर की इस सदी की नारी तमाम पुरुषवादी सोच और इस दायरे से कही मिलो आगे है । ......और तुम्हारे इस कथन पर मैं बस हँस भर देती हूँ । तुम्हारे दिए इस तमगे पर की पुरुष एकाधिकार की लड़ाई में तुम कितनी ही साफगोई से इस आधी औरत के जख्मो को भरने में लगे हो ...........आओ जरा मेरे साथ आज मैं तुम्हे दिखाती हूँ ,इस सदी की उस आधी औरत से मिलवाती हूँ, जिसे तुम घर ,परिवार ,समाज , सृष्टि और नयी सदी का जनक कहकर बार-बार सम्बोधित करते आ रहे हो ......देखो तुम्हारी इस नयी सदी में भी आधी की आधी औरत ही है.... देखो जरा उस एक आधी औरत को जिसे तुम बार-बार चीख -चिल्लाकर इस नयी सदी की सबसे ताकतवर होने का दर्जा दे कर पूरी सदी को ही भर्मित करने पर आमदा हो। जाहिर है यह सब सुनना तुम्हारे लिए उतना अचंभित करने वाला न हो क्योकि इस सब ताने-बाने को बुना तो तुमने ही है ना, और इस सबको बुनने में तुम्हे भी सदियाँ लगी है .....एक आधी औरत को आकड़ो में पिरो पूरा दिखiने में तुमने सृष्टि के इस इतिहास को कई बार बनाया भी है ,और बिगाड़ा भी । ..........मगर इतिहास बदले ,सदियाँ भी बदली मगर मैं फिर भी वही आधी की आधी औरत ........देख लो तुम्हारी इस नयी सदी की उस आधी औरत को जिसे तुम सम्पूर्ण ताकतवर होने के तमगे से नवाज रहे हो .........देखो यह मैं ही हूँ .......
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