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Dec 27, 2015

=> महिलाओं के लिए मिशाल बनती किरण जाटव

समय की चाल और कद्दावर नेताओं की रस्साकसी के बीच विरोधियों की विसात और थाप को पहचानकर अपने रास्ते को वक्त की नियति से पहले ही बदल लेने वाली वह महिला कोई साधारण नहीं है और न ही खद्दर-धारियों की तरह जाति मजहब और धर्म की सियासत करने वाली कोई आम नेता। बल्कि किरन आरसी जाटव वह महिला हैं जिन्हें अपने विश्वास और कर्तव्यपरायणता के बल पर आगे बढ़ने की हर चाल मालूम है। जिंदगी की कबाहतों और समाज की कलुषित विचारधाराओं से ऊबकर खुदको दलित, मजलूम और निरीह जीवों के लिये समर्पित करने वाली किरन जाटव अपने परिवार से बगावत कर समाज सेवा की डोर पकड़ चुकी हैं और जब भी समाज को शालीन नेता की जरूरत पड़ी है, किरन आरसी जाटव सदैव वहां खड़ी मिली हैं।

त्रिनाथ मिश्र मेरठ

आज पूरे देश को एक धागे में पिरोने की जरूरत आन पड़ी है इस बात की महत्ता को समझते हुये उत्तर प्रदेश सरकार में ‘एससी-एसटी आयोग की सदस्य’ किरन आरसी जाटव ने अपने जीवन को समाज एवं देश के लिये समर्पित कर दिया है, बकौल किरन अब वे समाज की उन बुलंदियों को छूने का ख़ाका तैयार कर रही हैं जिसके माध्यम से मेरठ ही नहीं अपितु पूरे देश की जनता को ग़रीबी और बेरोज़गारी से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा...

पहले कदम में वृद्धा पेंशन बनवाई

किरन बताती हैं कि उनका अब तक का सफर कांटो भरा रहा है जहां एक तरफ घर में उनकी उच्च-शिक्षा की तरफ बढ़ रहे कदम का विरोध हो रहा था तो कन्या विद्या धन से मिले बीस हजार रूपये से किरन ने बीए में चुपके से एडमिशन करा लिया तब वहीं दलित बस्ती में एक फार्म भरने की चर्चा ने किरन को रातों-रात ख्याति की ओर बढ़ा दिया। दरअसल किरन आरसी जाटव कॉलेज में शिक्षा हासिल करने के दौरान एक दिन अपनी बहन के यहां जयभीम नगर जा रही थी उसी समय रास्ते में एक वृद्ध महिला ने उनसे एक फार्म भरने की प्रार्थना की। किरन ने रुक कर उस महिला का फार्म लिया और फिर अपनी बहन के यहां चली गई। शाम के वक्त इनकी बहन के यहां महिलाओं का समूह जमा होने लगा, उनके वहां आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि किरन ने जिस महिला का फार्म भरा था उसकी वृद्धा पेंशन बननी तय हो गई, अब हम सब अपनी वृद्धा पेंशन किरन के जरिये ही बनवायेंगे। इस बात को सुनकर किरन ने ऐसा होना इत्तेफाक की बात कही। लाख समझाने के बाद भी वे महिलायें नहीं मानी और अन्ततः उन्हें वृद्धा पेंशन बनवाने का अश्वासन देना पड़ा।

नियमों के मकड़जाल में उलझ गई कहानी

वृद्धा पेंशन उन बूढ़ी लाचार और बेसहारा महिलाओं के लिए कितना बड़ा सहारा है किरन को इस बात का एहसास तब हुआ जब महिलाओं का एक समूह पेंशन दिलाने के लिए किरन के सामने गिड़गिड़ाने लगा, कांपती लरज़ती मिन्नतों ने किरन को ये फैसला करने पर मजबूर कर दिया कि अब चाहे जो हो, वो इन महिलाओं को इनका हक¸ दिला कर ही रहेंगी, लेकिन एक साथ जब इतने सारे फॉर्म भरकर किरन पेंशन बनवाने पहुंची तो सरकारी तंत्र में फंस कर खुद को बड़ा असहाय महसूस करने लगी उस समय एहसास हुआ था की सरकार भले ही आम जनता के लिए कितनी योजनायें निकाल दे लेकिन उनको हासिल करना ‘नामुमकिन’ जितना मुश्किल काम है लेकिन किरन अब भी अपने फैसले पर अटल थी यानी जो ठान लिया उसको पूरा करना है।

मां-बाप ने किया किनारा

किरन का साहस देख कर जहां सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने उनको अपनी बेटी बना लिया वहीं उनको अखिलेश यादव के रूप में एक भाई भी मिल गया था, इतनी बड़ी ख़ुशी किरन को मिली लेकिन उसके साथ ये विपदा भी थी कि उनका अपना परिवार उनके साथ नहीं था। आयेदिन धरना प्रदर्शन करने और प्रशासन के दबाव से आजिज आकर किरन के परिवार ने उनसे किनारा कर लिया। एक साहसी लड़की को सहयोग देने के बजाय उसके मनोबल पर गहरी चोट की गई, लेकिन चट्टान की तरह सख्त¸ इरादों वाली इस दुबली-पतली लड़की ने गरीबों की समस्याओं को लेकर अपने कदमों को हमेशा आगे बढ़ाती रही।

ये थीं किरन की छह मांगें, जिनसे बढ़ा कद

1- गरीबों के लिये उच्च शिक्षा का कर्ज ब्याजमुक्त किया जाये 2- गरीब छात्राओं को अगल अलग डिग्री के लिये प्रोत्साहन राशि दी जाये 3- गरीब विवाह अनुदान राशि 10 हजार से बढ़ाकर 50 हजार की जाये 4- विधवा एवं वृद्धावस्था पेंशन गरीबी के आधार पर तय की जाये, न कि बालिग पुत्र के आधार पर 5- प्रत्येक कस्बा, तहसील एवं ब्लॉक स्तर पर बालिका इंटर कॉलेज व डिग्री कॉलेज खोला जाये 6- प्रदेश के सभी प्राइवेट एवं सरकारी स्कूलों में प्राइमरी से लेकर इंटर तक की कक्षा का पहला पीरियड समाचार पत्रों की खबरें पढ़ाकर शुरु की जाये

जायज मांगो के एवज में मिली थी जेल

अपनी मांगो को पूरा कराने और बेसहारों को उनका हक¸ दिलाने के लिए किरण ने नवम्बर 2008 को मेरठ से लखनऊ की पदयात्रा की। मेरठ से लखनऊ तक साइकिल यात्रा कर मुख्यमंत्री से मिलने का निश्चय किया, उनको लगता था की तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिलकर वो उन महिलाओं का काम कराएंगी जो बेसहारा हैं और सरकारी तंत्र की कार्यशैली से भी उनको वाकिफ कराएंगी लेकिन ‘दलितों की मसीहा’ कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी की सर्वेसर्वा और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने एक अकेली और जांबाज़ दलित लड़की को जायज मांगो के एवज में जेल भेजवा दिया। कुछ दिनों के बाद पुनः मुख्यमंत्री से मिलने का संकल्प लेकर किरन लखनऊ के लिये रवाना हो गईं इस बात से क्षुब्ध तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किरन को अपराधिक धाराओं में फिर जेल भेजवा दिया।

किसी ने नहीं की मदद

दलितों की मसीहा ने एक दलित लड़की को जेल में डलवा दिया, जिसके मां-बाप बेहद गरीब थे और जिसके समाज में पुलिस का खौफ इस कदर था कि लोग थाने की तरफ देखने से ही डर जाते थे। किरन के जेल से छुड़ाने में उनकी मदद के लिये कोई नहीं आया। करीब 15 दिनों के बाद कुछ अनजान लोगों ने किरन की जमानत कराई।

सपा सुप्रिमों बने मसीहा

मांगों के एवज में जेल जाने के बाद मदद के नाम पर निराशा भाव लिये किरन को 15 दिनों तक जेल में ही बिताना पड़ा, इसके बाद उनकी जमानत हुई और बाद में किरन को पता चला कि उनकी मदद करने वाला कोई और नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के पुरोधा लोकनायक मुलायम सिंह यादव थे। इस बात का पता चलते ही वे स्तब्ध रह गईं और अपने मसीहा से मिलने कृतज्ञता के भाव से उनके आवास पर पहुंच गई। इनके हौसलों को देखते हुये बाद में मुलायम सिंह यादव ने इन्हें ‘एससी-एसटी आयोग का सदस्य’ बनाया।
किरन ने दुश्वारियों भरा एक लम्बा सफर छोटी सी उम्र में ही तय कर लिया है समाज में अच्छे बुरे अनुभव किये है, सरकारी तंत्र और आम आदमी की सभी समस्याओं को बहुत करीब से देखा है, इन सारे अनुभवों के बाद अब किरन का लक्ष्य है की एक ऐसे समाज का निर्माण हो जहाँ युवा पीढ़ी बेरोज़गारी की समस्या से निजात पा सके क्योंकि बेरोज़गारी जहाँ देश की सबसे ज्वलंत समस्या है वही ज्यादातर युवा वर्ग के मन की असली पीढ़ा भी यही है, किरन के ज़ेहन में इस समस्या को लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण खाका बना हुआ है लेकिन उसको मूर्त रूप देने के लिए उनके प्रयास और कोशिशें जारी है, उनका कहना है की वो जल्दी युवा-वर्ग के लिए कुछ अच्छा संदेश देंगी जो देश से बेरोज़गारी को खत्म कर एक साधन सम्पन्न युवा-भारत का निर्माण करने में सहयोग करेगा।

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