अपनी याददास्त में ऐसी राजनीति कभी बनते नहीं देखी। कोई माने या न माने अगले तीन साल भारत में सियासी झगड़ा ही झगड़ा है। वह सब होगा जो अकल्पनीय है। भाजपा का सीधे निशाना क्योंकि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अहमद पटेल हैं। इनके अलावा राबर्ट वाड्रा, पी चिदंबरम की दूसरी कतार भी निशाने में है। इसलिए अनहोनी बातें होंगी। जांच होगी। पूछताछ होगी। नेता हिरासत में लिए जाएंगे। किसी से घंटों पूछताछ होगी तो कोई जेल में होगा। कोर्ट से सजा के फैसले आएंगे। हिसाब से पक्ष-विपक्ष में टकराव का निर्णायक समय पांच साल की सरकार के आखिरी साल में होता है। सत्ता पक्ष को विपक्ष मारे या विपक्ष सरकार को मारे, यह चुनाव लड़ने की तैयारी का आखिरी साल का हल्ला होता है।
इस दफा तीन साल पहले ही लड़ाई पीक पर है। और लड़ाई आर-पार वाली है। कांग्रेस, सोनिया गांधी, अहमद पटेल एंड पार्टी के साथ क्या होगा, इसकी जितनी कल्पना आप कर सकते हैं उसे मोदी सरकार और भाजपा की आक्रामकता में बूझें। नेशनल हेराल्ड, अगस्ता हेलीकॉप्टर के मामले में मोदी सरकार और भाजपा ने जो आक्रामकता दिखाई है उसका सीधा अर्थ है कि सोनिया गांधी, अहमद पटेल या तो 2018 के आखिर तक निपटने चाहिए अन्यथा भाजपा के लिए लेने के देने पड़ेंगे। तीन साल की अवधि में जांच को, कार्रवाई को किसी अंत परिणति में मोदी सरकार को पहुंचाना होगा। यह नहीं हो सकता कि अभी जैसे सिर्फ हल्ला है उसी तरह तीन साल हल्ला चलता रहे तब मोदी सरकार की जनता में साख क्या बचेगी?
उधर कांग्रेस के लिए जीवन-मरण की लड़ाई है। वह ऐसा हर संभव काम करेगी जिससे मोदी सरकार काम न कर पाए। बदनाम हो। मतलब राजनीति में अब कोई लिहाज नहीं रखा जाएगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने ठान ली है कि भारत को सचमुच कांग्रेस मुक्त बनाना है। यह तभी संभव है जब गांधी परिवार भ्रष्टाचार के प्रामाणिक मामलों में कलंकित हो। भाजपा में मानना है कि स्थितियां अनुकूल हैं। एक के बाद एक स्कैंडल मौजूद हैं तो क्यों न भारत को कांग्रेस याकि गांधी मुक्त बनवाया जाए? अगस्ता मामले में इटली के हाईकोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भारत में रिश्वत बंटी। अब तो सिर्फ मनी ट्रेल, गवाहों की ही तलाश होनी है।
नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी, राहुल गांधी का तकनीकी सवालों में बचाव कर सकना आसान नहीं होगा। इस सोच के साथ सरकार ने राफेल और ट्रेनी विमान की खरीद में भी कुछ मालूम होने पर जांच की जो बात कही है वह भी गंभीर है। उधर नवीन जिंदल के कोयला खान मामले और दसूरी राव के केस के सुराग आखिर कहां जाएंगे इसको ले कर भी भाजपा के अंदरखाने में चर्चा है तो वाड्रा और भूपिंदर सिंह हुड्डा के जमीन मामले की जांच को ले कर भाजपा में कम आत्मविश्वास नहीं है।
इस सबका सीधा अर्थ है कि भाजपा और कांग्रेस का परंपरागत रिश्ता खत्म है। अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार के वक्त कांग्रेस और सोनिया गांधी को ले कर जो सदिच्छा बनाए रखी थी वैसा कुछ नरेंद्र मोदी-अमित शाह के वक्त में नहीं है। तथ्य है कि वाजपेयीझ्रआडवाणी ने कांग्रेस और दस, जनपथ को अलग ढंग से हैंडल किया था। तब तक भाजपा और एक हद तक संघ परिवार में सोच थी कि राष्ट्रीय राजनीति के नाते कांग्रेस का महत्व है। उसे खत्म नहीं होने देना चाहिए।
वह सोच अब नहीं है। एक मुख्य कारण यूपीए सरकार में संघ परिवार, नरेंद्र मोदी, अमित शाह को कटघरे में खड़ा करने की करतूतें हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ जो हुआ उसे वे कैसे भुला सकते हैं? ये दिल्ली, दिल्ली की एलिट जमात, इनसाइडर जमात की मुहिम को भूल नहीं सकते।
इसलिए यदि आज मसाला है और कांग्रेस लीडरशीप व परिवार को निपटाने का मौका है तो सरकार और भाजपा क्यों बख्सने की सोचें? इस एक सप्ताह में राज्यसभा और लोकसभा में जो हुआ, डा. सुब्रहमण्यम स्वामी, कीरिट सोमैय्या, अनुराग ठाकुर, निशिकांत ने सदन में जो कहा और शुक्रवार को संसद भवन में गांधी की मूर्ति के आगे खड़े हो कर भाजपा सांसदों ने सोनिया गांधी को ले कर जो नारे लगाए उससे यह मकसद जाहिर है कि अगले तीन साल भाजपा अखिल भारतीय स्तर पर गली-गली में शोर बनवा देगी। यह शोर हथियार सौदों में दलाली खाए जाने का होगा।
इसका न समझ आने वाला पहलू तीन साल लगातार टकराव को खिंचाने का है। मोदी सरकार और भाजपा क्या कांग्रेस पर हमले को इतना लंबा खींच सकेंगी? हल्ले के साथ तीन साल में मोदी सरकार क्या जांच को अदालती फैसले तक में बदल सकेंगी? फिर कांग्रेस की जवाबी राजनीति, हल्ले और राज्यसभा में गतिरोध पर सरकार क्या करेगी? कांग्रेस में तो मजबूरी के तकाजे में यह राय है कि सरकार से, नरेंद्र मोदी से अब निजी लड़ाई लड़नी है। नतीजतन आप भी यह विचार करें कि राजनीति का यह टकराव अगले तीन वर्षों में क्या-क्या गुल खिलाएगा, सिनेरियो बनाएगा?
इस दफा तीन साल पहले ही लड़ाई पीक पर है। और लड़ाई आर-पार वाली है। कांग्रेस, सोनिया गांधी, अहमद पटेल एंड पार्टी के साथ क्या होगा, इसकी जितनी कल्पना आप कर सकते हैं उसे मोदी सरकार और भाजपा की आक्रामकता में बूझें। नेशनल हेराल्ड, अगस्ता हेलीकॉप्टर के मामले में मोदी सरकार और भाजपा ने जो आक्रामकता दिखाई है उसका सीधा अर्थ है कि सोनिया गांधी, अहमद पटेल या तो 2018 के आखिर तक निपटने चाहिए अन्यथा भाजपा के लिए लेने के देने पड़ेंगे। तीन साल की अवधि में जांच को, कार्रवाई को किसी अंत परिणति में मोदी सरकार को पहुंचाना होगा। यह नहीं हो सकता कि अभी जैसे सिर्फ हल्ला है उसी तरह तीन साल हल्ला चलता रहे तब मोदी सरकार की जनता में साख क्या बचेगी?
उधर कांग्रेस के लिए जीवन-मरण की लड़ाई है। वह ऐसा हर संभव काम करेगी जिससे मोदी सरकार काम न कर पाए। बदनाम हो। मतलब राजनीति में अब कोई लिहाज नहीं रखा जाएगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने ठान ली है कि भारत को सचमुच कांग्रेस मुक्त बनाना है। यह तभी संभव है जब गांधी परिवार भ्रष्टाचार के प्रामाणिक मामलों में कलंकित हो। भाजपा में मानना है कि स्थितियां अनुकूल हैं। एक के बाद एक स्कैंडल मौजूद हैं तो क्यों न भारत को कांग्रेस याकि गांधी मुक्त बनवाया जाए? अगस्ता मामले में इटली के हाईकोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भारत में रिश्वत बंटी। अब तो सिर्फ मनी ट्रेल, गवाहों की ही तलाश होनी है।
नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी, राहुल गांधी का तकनीकी सवालों में बचाव कर सकना आसान नहीं होगा। इस सोच के साथ सरकार ने राफेल और ट्रेनी विमान की खरीद में भी कुछ मालूम होने पर जांच की जो बात कही है वह भी गंभीर है। उधर नवीन जिंदल के कोयला खान मामले और दसूरी राव के केस के सुराग आखिर कहां जाएंगे इसको ले कर भी भाजपा के अंदरखाने में चर्चा है तो वाड्रा और भूपिंदर सिंह हुड्डा के जमीन मामले की जांच को ले कर भाजपा में कम आत्मविश्वास नहीं है।
इस सबका सीधा अर्थ है कि भाजपा और कांग्रेस का परंपरागत रिश्ता खत्म है। अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार के वक्त कांग्रेस और सोनिया गांधी को ले कर जो सदिच्छा बनाए रखी थी वैसा कुछ नरेंद्र मोदी-अमित शाह के वक्त में नहीं है। तथ्य है कि वाजपेयीझ्रआडवाणी ने कांग्रेस और दस, जनपथ को अलग ढंग से हैंडल किया था। तब तक भाजपा और एक हद तक संघ परिवार में सोच थी कि राष्ट्रीय राजनीति के नाते कांग्रेस का महत्व है। उसे खत्म नहीं होने देना चाहिए।
वह सोच अब नहीं है। एक मुख्य कारण यूपीए सरकार में संघ परिवार, नरेंद्र मोदी, अमित शाह को कटघरे में खड़ा करने की करतूतें हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ जो हुआ उसे वे कैसे भुला सकते हैं? ये दिल्ली, दिल्ली की एलिट जमात, इनसाइडर जमात की मुहिम को भूल नहीं सकते।
इसलिए यदि आज मसाला है और कांग्रेस लीडरशीप व परिवार को निपटाने का मौका है तो सरकार और भाजपा क्यों बख्सने की सोचें? इस एक सप्ताह में राज्यसभा और लोकसभा में जो हुआ, डा. सुब्रहमण्यम स्वामी, कीरिट सोमैय्या, अनुराग ठाकुर, निशिकांत ने सदन में जो कहा और शुक्रवार को संसद भवन में गांधी की मूर्ति के आगे खड़े हो कर भाजपा सांसदों ने सोनिया गांधी को ले कर जो नारे लगाए उससे यह मकसद जाहिर है कि अगले तीन साल भाजपा अखिल भारतीय स्तर पर गली-गली में शोर बनवा देगी। यह शोर हथियार सौदों में दलाली खाए जाने का होगा।
इसका न समझ आने वाला पहलू तीन साल लगातार टकराव को खिंचाने का है। मोदी सरकार और भाजपा क्या कांग्रेस पर हमले को इतना लंबा खींच सकेंगी? हल्ले के साथ तीन साल में मोदी सरकार क्या जांच को अदालती फैसले तक में बदल सकेंगी? फिर कांग्रेस की जवाबी राजनीति, हल्ले और राज्यसभा में गतिरोध पर सरकार क्या करेगी? कांग्रेस में तो मजबूरी के तकाजे में यह राय है कि सरकार से, नरेंद्र मोदी से अब निजी लड़ाई लड़नी है। नतीजतन आप भी यह विचार करें कि राजनीति का यह टकराव अगले तीन वर्षों में क्या-क्या गुल खिलाएगा, सिनेरियो बनाएगा?
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