रोजेदार की दुआं नहीं होती मुसतर्द
हमदर्दी और गमख्वारी का महीना है रमजान
लियाकत मंसूरी।
मेरठ। हजरत सलमान फारसी रजि. से रिवायत है कि माहे शाबान की आखिरी तारीख को रसूल सल्ल. ने हमको एक खुतबा दिया। उसमें आपने पफरमाया- 'ऐ लोगों तुम पर एक अजमल और बरकत वाला महीना साया पिफगन हो रहा है। उस महीने की एक रात ;शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है। इस महीने के रोजे अल्लाह पाक ने फर्ज किए है और उसकी रातों में बारगाहे इलाही में खड़े होने ;यानि नमाज तरावीह पढ़ने को नफ्रल इबादत मुकर्रर किया है। जो शख्स उस महीने अल्लाह पाक की रजा और उसका कुर्ब हासिल करने के लिए गैर फर्ज इबादत ; सुन्नत या नफ्ल अदा करेगा तो दूसरे जमानों के फर्जो के बराबर उसको सवाब मिलेगा। और इसी महीनें फर्ज अदा करने का सवाब दूसरे जमानों के 70 फर्जो के बराबर मिलेगा। यह हमदर्दी और गमख्वारी का महीना है। जिसमें मोमिन बन्दों के रिज्क में इजाफा किया जाता है। जिसने इस महीनें किसी रोजेदार को ;अल्लाह पाक की रजा और सवाब हासिल करने के लिएद्ध इफ्रतार कराया तो उसके लिए गुनाहों की मगफिरत और आतशे दोजख से आजादी का जरीया होगा। और उसको रोजेदार के बराबर सवाब दिया जायेगा। बगैर इसके कि रोजेदार के सवाब में कोई कमी की जाए।'
आप सल्ल. से अर्ज किया गया रसूल अल्लाह हम में से तो हर एक को इफ्तार कराने का सामान मयस्सर नहीं होता तो क्या गरीब इस अजीम सवाब से महरूम रहेंगे। आप सल्ल. ने फरमाया- अल्लाह पाक यह सवाब उस शख्स को भी देगा जो दूध् की थोड़ी लस्सी पर या पानी के घूंट पर किसी रोजेदार का रोजा इफ्तार करा दे। और जो किसी रोजेदार को खाना खिला दे उसको अल्लाह पाक मेरे हौजे कौसर से ऐसा सैराब करेगा, जिसके बाद उसको न कभी प्यास लगेगी। यहां तक कि वह जन्नत में पहुंच जायेगा।
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दोजख से रिहाई-इस माहे मुबारक का पहला हिस्सा रहमत है। दरमियानी हिस्सा मगफिरत है और तीसरा व आखिरी हिस्सा दोजख से आजादी है। जो आदमी इस महीनें में अपने नौकरों-चाकरों के काम में कमी कर देगा अल्लाह पाक उसकी मगफिरत फरमा देगा और उसे दोजख से रिहाई और आजादी देगा। और जो लोग रमजान के रोजे ईमानों एहतेसाब के साथ रमजान की रातों में नवाफिल; तरावीह व तहज्जुद पढ़ेंगे उनके भी सारे पिछले गुनाह मुआफ कर दिए जायेंगे।
रोजे की बरकत-हजरत अबू हुरैरह रजि. से रिवायत है कि रसूल सल्ल. ने पफरमाया कि रोजा रखा करो, तन्दुरूस्त रहा करोगे। आयशा सिददीका रजि. पफरमाती है कि जब रमजान मुबारक का तीसरा अशरा शुरू होता है तो रसूल कमर कस लेते और शब बेदारी करते। यानि पूरी रात इबादत करते और जिक्रों दुआ में मशगूल रहते और अपने घरों के लोगों और दूसरे रिश्तेदारों को भी जगाते ताकि वह भी उन रातों की बरकतों और सआदतों में हिस्सा ले।
रूयते हिलाल की तहकीक और शाहिद की शहादत-हजरत सल्ल. की सुन्नत यह थी कि जब तक रूयते हिलाल का सुबूत न हो जाए या कोई ऐसी गवाह न मिल जाए आप रोजा शुरू नही करते। जैसा की आप सल्ल. ने इब्ने उमर रजी. की शहादत कबूल करके रोजा रखा। आप सल्ल. बादल के दिन रोजा नहीं रखते थे, न आपने उसका हुक्म दिया। बल्कि पफरमाया-जब बादल हो तो शाबान के तीस दिन पूरे किए जाए। चांद देखकर रोजा रखो और चांद देखकर रोजा छोड़ दो और 29 तारीख को चांद दिखाई न दे तो तीस की गिनती पूरी करो।
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सहरी-हुजूर सल्ल. का इर्शादे गिरामी है कि सहरी में बरकत है। उसे हरगिज-हरगिज न छोड़ना। अगर कुछ नहीं तो उस वक्त पानी का घूंट ही पी लिया जाये। क्योंकि सहरी में खाने पीने वालों पर अल्लाह रहमत पफरमाता है और पफरिश्ते उनके लिए दुआएं करते है।
इफ्रतार-अल्लाह पाक का इरशाद है कि अपने बंदों में मुझे वह बंदा ज्यादा महबूब है जो रोजे के इफ्रतार में जल्दी करे। यानि ग्रूब आपफताब के बाद बिल्कुल देर न करे। जब तुम मे से किसी का रोजा हो तो वह खजूर से इफ्रतार करे। और अगर खजूर न हो तो पिफर पानी से इफ्रतार करें। इसलिए की पानी को अल्लाह तआला ने तहूर बनाया है। हजरत अनस रजि. का इरशाद है कि आप सल्ल. मगरिब की नमाज से पहले चन्द तर खजूरों में रोजा इफ्रतार पफरमाते थे और अगर तर खजूर वक्त पर मौजूद न होती तो सूखी खजूरों से रोजा पफरमाते थे और अगर सूखी खजूर भी न होती तो चन्द घूंट पानी पी लेते थे।
तरावीह-अक्सर उलेमा इस बात पर मुत्तपिफक है कि तरावीह के मसनून न होने पर अहले सुन्नत जमाअत का इजापफा है। आइमा-आइबा में से यानि इमामे आजम अबू हनीपफा रह., इमाम शापफर रह., इमाम अहमद बिन हबल रह. इन सब हजरात की किताबों में इसकी तशरीह है कि तरावीह के 20 रकअत सुन्नत है।
कुरान मजीद का सुनना-रमजान शरीपफ में कुरान मजीद का एक मर्तबा तरतीबवार तरावीह से पढ़ना सुन्नतें मोक्केता है। अगर किसी वजह से इसका अन्देशा हो कि मुक्तदी तहम्मुल न कर सकेंगे तो पिफर अलमतरा कैपफा से आखिर तक दस सूरतें पढ़ ली जाए। हर रकअत में एक सूरत हो फ़िर दस रकअत पूरी होने पर उन्हीं सूरतों को दोबारा पढ़े और जो सूरते चाहे पढ़े।
तरावीह पूरा महीना पढ़ना-तरावीह का रमजानुल मुबारक के पूरे महीनें पढ़ना सुन्नत है। अगरचे कुरान मजीद खत्म होने से पहले खत्म हो जाए, मसलन 15 रोजा में कुरान मजीद खत्म हो जाए। तो बाकी दिनों में भी तरावीह का पढ़ना सुन्नत है।
रमजान माह की पफजीलत के बारे में जैसा कि अमर भारती को नायब शहर काजी जैनुर्राशिददीन व कारी शपफीकुर्रहमान ने बताया।
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