मेरठ। शहर में कई बार लोगों को परेशान और प्रशासन को चुनौती देने के लिए दंगे का सहारा लिया जाता है मगर असली व्यक्ति पकड़ में क्यों नहीं आता? यही बात हर बार कोसती रह जाती है। सरगना के फनों को कुचल न पाना हर बार प्रशासन के लिए एक सबब बन के उभरा है। पिछले छः वर्षों से अब तक कुल चार बार दंगे हो चुके हैं मगर इन दंगों को कराने वाले माफिया हर बार पाक-साफ हो जाते हैं, क्या है इसकी वजह? प्रशासन की नाकामी, पब्लिक की नासमझी या फिर राजनीति का तड़का?
हर बार एक चिंगारी का रूप पकड़ कर शहर में जगह बना लेने वाला यह ‘दंगा’ मेरठ को क्यूं तड़पाता है? क्या दंगाईयों की कोई खास पहचान है या फिर सियासी गडि़त को सफल बनाने के लिए यह एक नीयम है? बहरहाल मामला जो भी हो हम सभी को समझदारी से ही काम लेना चाहिए ताकि शांति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किसी के अपील करने का मोहताज न होना पड़े।
2009 के बाद सभी वर्षा में लगातार हिंसा और बवाल हुआ है शहर के अतिसंवेदनशील ईलाकों में शुमार थाना नौचंदी, लिसाड़ी गेट, देहली गेट, ब्रह्मपुरी, लालकुर्ती आदि जगहों पर मामूली विवाद को लेकर हाने वाली झड़पें और फिर इनका खतरनाक रूप देख हर किसी का पासीना छूट जाता है। इस बार भी पानी का विवाद इतना गहरा रूप ले बैठा जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। इस सांप्रदायिक हिंसा में 50 से भी ज्यादा लोगों के घायल होने और एक की मौत हाने की पुष्टि हुई है।
पुलिस करती है केस को कमजोर?
इस तरह के मामलों पर अक्सर पुलिस ही केस को कमजोर करती है। अति संवेदनशील मेरठ में पुलिस का काम लकीर पीटने जैसा ही है। आरटीआई के तहत दी गई जानकारी में कई थानों की पुलिस ने खुद ही स्वीकार कर लिया कि उन्माद होने के बाद ही ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई जाती है जो उन्माद भड़काने वाले हैं। इससे पहले सतर्कता के लिए कई थानों के पास कोई लिस्ट ही नहीं है। शहर के तीरगरान मुहल्ले में भड़की हिंस्सा के आरोपियों को पुलिस के कमजोर विवेचना का भी सहारा मिल जाता है और फिर कातिल छोटी सी सजा में ही सिमट कर रह जाते हैं।
दिमागी तौर पर कमजोर हो चुकी पुलिस को अब यह भी नहीं पता कि ज्यादातर लोग शिक्षित हो चुके हैं और उन्हें तर्क-वितर्क के पहाड़ों से लेकर उलटी गिनती गिनने के तरीकों तक का ज्ञान हो चुका है। हिंसा के दौरान शुभम को पुलिस के सामने गोली मारने वाले शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार कर के उससे 32 बोर की पिस्टल बरामद कर ली है मगर बात तो यह है कि शुभम की मौत 315 बोर की गोली लगने से हुई। आखिर गोली चलते हुए मौन दर्शक बने ये पुलिस वाले क्या सिर्फ अपनी ड्यूटी पूरा कर रहे हैं। बीरहाल शुभम के चार हत्यारों में से पुलिस ने दो को गिरफ्तार किया है और बाकी दो की तलास जारी है।
राजनीतिक बयारों का दौर
शनिवार को दो समुदायों में हुए बवाल के बाद मेरठ में राजनीतिक सरगर्मियां अचानक तेज हो गई हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बवाल के दूसरे ही दिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और कांग्रेस प्रत्याशी नगमा ने मेरठ पहुंचकर घायलों का हाल जाना। इसके बाद राजनीतिक बयानबाजी की।
नगमा ने तीरगरान मोहल्ले बवाल के लिए बसपा और भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बसपा और भाजपा नहीं चाहती हैं कि शहर में अमन-चैन रहे। उधर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने इस पूरे मामले के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है।
नगमा ने कहा कि जहां घटना हुई उसके पास ही बसपा प्रत्याशी का आवास है। वह यदि चाहते तो घटना नहीं होती। इससे साफ है कि बसपा चाहती थी कि बवाल बढ़े। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जनता से झूठ बोलते हैं। गुजरात विकास का दावा करने वाले यह क्यों नहीं बताते कि गुजरात पर कितना कर्ज है। इसके बाद नगमा घायलों का हाल जानने अस्पताल भी गईं और घायलों के परिवार के लोगों से बात की।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने चुनाव आयोग से घटना की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। इसके साथ ही उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की है। वे घायलों का हाल जानने सुशीला जसंवत राय अस्पताल पहुंचे थे।
यह है मामला
एक धार्मिक स्थल के पास प्याऊ बनाने के मामूली विवाद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संवेदनशील मेरठ शहर को सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में ले लिया। कोतवाली थानाक्षेत्र के तीरगरान और गुदघ्ी बाजार में हालात इस कदर बिगड़े कि दो समुदायों के बीच घंटों तक जमकर पथराव, फायरिंग और आगजनी हुई। उत्तेजित भीड़ ने दुकानों में तोड़फोड़ और लूटपाट की। पास ही खड़ी मोटरसाइकल को भी फूंक दिया गया। हिंसा में 5 लोगों को गोली लगी है जबकि पथराव में 45 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।
हालांकि जिला प्रशासन अब स्थिति को नियंत्रण में बता रहा है लेकिन इलाके में अभी भी अफवाहों का बाजार गर्म है। प्रभावित क्षेत्र में कई थानों की फोर्स और सुरक्षा बलों को तैनात कर हिंसा पर काबू पाया जा सका। पूरे शहर में कड़र्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर गया है और तनाव पूर्ण हालात के चलते बाजार बंद हो गए हैं। डीएम के मुताबिक स्थिति नियंत्रण में है और सभी अधिकारी मौके पर हैं। किसी को भी इसपर चिंता करने की जरूरत नहीं है।
दरअसल, मोहल्ला तीरगरान के पास स्थित रंगरेजान मस्जिद के पास अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग प्याऊ बना रहे थे। दूसरे समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया। इसी विरोध से शुरू हुआ मामला इतना बढ़ा कि प्याऊ के निर्माण के लिए लगाए गए गेट को तोड़ दिया गया। इसके बाद दोनों समुदायों के लोग आमने-सामने आ गए और देखते ही देखते हिंसा का दौर शुरू हो गया। दोनों पक्ष के लोगों ने एक-दूसरे पर पथराव शुरू कर दिया। इसके बाद दोनों ओर से फायरिंग भी हुई।
अभी पुलिस स्थिति संभाल ही रही थी कि गुदड़ी बाजार में फिर फायरिंग शुरू हो गई। पुलिस के सामने ही दोनों ओर से खुलेआम फायरिंग होती रही। डीएम, एसएसपी के साथ भी धक्का-मुक्की हुई और देखते ही देखते हालत बेकाबू हो गए।
पथराव में घायल डीएसपी रुपेश को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। काफी देर बाद आइजी के साथ पहुंचे पुलिस और सुरक्षा बलों ने गुदड़ी बाजार में मोर्चा संभाल कर दंगाइयों को काबू किया। आई जी आलोक शर्मा ने बताया कि दंगाइयों से सख्ती से निपटेंगे। पांच कंपनी आरएएफ, पांच कंपनी पीएसी बुला ली गई है। जोन के सभी जिलों से सुरक्षाबलों को भी बुलाया गया है।
हलांकि अगले दिन रविवार को माहौल शांतिपूर्ण रहा। पुलिस ने हिंसा के मामले में 200 से ज्यादा लोगों पर मामला दर्ज किया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हालात का जायजा लेने के लिए पुलिस महानिदेशक और प्रमुख सचिव (गृह) को रविवार को मेरठ भेजा।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को पुलिस महानिदेशक ए.एल. बनर्जी और प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता को मेरठ जाकर हालात का जायजा लेकर उन्हें अवगत कराने के निर्देश दिए। पुलिस महानिदेशक ने रविवार को बताया कि फिलहाल स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। शनिवार शाम के बाद से कोई हिंसक घटना सामने नहीं आई है।
200 लोगों के खिलाफ केस दर्ज
शनिवार को मुहल्ला तीरगरान में दो पक्षों के बीच हुए बवाल के मामले में देर रात लगभग दो बजे पांच लोगों ने अलग - अलग तहरीर देकर एक पार्टी के नेताओं समेत करीब 200 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। यह मुकदमें एक पक्ष के लोगों की तरफ से दर्ज कराए गए हैं। इनमें करीब 15 लोगों को नामजद किया गया है। मीडियाकर्मियों की ओर से भी मारपीट , लूटपाट की धराओं में मुकदमा दर्ज कराया है। सभी मुकदमे थाना कोतवाली में दर्ज कराए गए हैं। वहीं , दूसरे पक्ष की ओर से कोई तहरीर नहीं दी गई है। उनके पक्ष का एक शख्स घटना के बाद से गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है , जहां उसकी हालत नाजुक बताई जा रही है।
दंगा भड़केगा तब बनेगी पुलिस की लिस्ट
मेरठ। आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने धार्मिक उन्माद या सांप्रदायिक दंगों की रोकथाम के साथ ही असामाजिक व भड़काऊ प्रवृत्ति के व्यक्तियों पर कार्यवाही के लिए क्या प्रयास पुलिस प्रशासन द्वारा किये जाते हैं और क्या व्यवस्था है। इस पर 12 बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। जिसमें वर्ष 2000 से लेकर अब तक मामलों पर रिपोर्ट तलब की गयी है। इसमें उन्होंने थानावार ऐसे लोगों की सूची जो उन्माद भड़काने के लिए चिन्ह्ति हों, उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई हुई, ऐसे थाने और पुलिस चैकियां जो संवदेनशील हैं, दंगा नियंत्रण को अंतिम बार रिहर्सल कब किया गया, स्थानीय अभिसूचना इकाई की ऐसे मामलों में की गयी कार्रवाई आदि की सूचना तलब की थी।
नौचंदी और ब्रहमपुरी थाने को छोड़ दें तो शहर के किसी भी थाने ने ऐसे व्यक्ति की सूचना नहीं दी है, जो उनके यहां उन्माद भड़काने वाला हो। अधिकांश थानों में उन्माद भड़काने वाले पहले से चिन्ह्ति नहीं है। उन्माद होने के बाद उन्हें चिन्ह्ति करने की कार्रवाई होती है। कई थाना प्रभारियों ने अपने यहां ऐसे लोगों की सूची उपलब्ध होने की बात तो कही, लेकिन शांति भंग होने का कारण बताते हुए उसे सार्वजनिक करने से इंकार किया।
एलआईयू नहीं करती काम
ऐसे मामलों में स्थानीय अभिसूचना इकाई पर मांगी गयी सूचना शून्य है। थानों की नजर में स्थानीय अभिसूचना विभाग ने या तो कोई काम नहीं किया या सांप्रदायिक उन्माद के मामलों में पूरी तरह फेल साबित हुई है। आरटीआई में अवैध हथियारों पर भी सूचना मांगी गई थी। जिसमें सभी थाना प्रभारियों ने पिछले 9 साल के भीतर हथियारों की बड़ी खेप पकड़ने से इंकार किया है। सभी ने अपने यहां दंगा नियंत्रण के लिए पर्याप्त संसाधन और समय समय पर पूर्वाभ्यास किये जाने का भी दावा किया है। आरटीआई में जो जवाब थाना प्रभारियों ने दिया है, उसके अनुसार सभी थानों में क्षेत्र और आबादी के हिसाब से पुलिस बल आधा ही मौजूद है।
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