संवाददाता।
महंगाई के कारण लोगों ने खरीदारी का विचार त्याग दिया है या उचित समय का इंतजार कर रहे हैं। इससे खासकर शहरों में उत्पादों की बिक्री प्रभावित हुई है। वास्तव में इस समस्या का समाधान हमारे देश के ग्रामीण इलाकों या शहरों में तब्दील होते कस्बों या गांवों में निहित है। इनकी संख्या देशभर में 5000 के लगभग है। यहां के लोग बड़े शहरों में खरीदारी के लिए आते हैं। इसे देखते हुए पैराशूट ब्रांड तेल बनाने वाली मैरिको लिमिटेड की सीईओ सौगता गुप्ता की बात विचारणीय हो जाती है। उनका मानना है कि उभरते शहरों की आबादी खर्च करने को तैयार है, लेकिन एफएमसीजी उत्पाद बनाने वाली कंपनियां उन तक पहुंच नहीं पा रही हैं। इसे समझते हुए ही कंपनी ने खास रणनीति बनाई है।
भारत के ग्रामीण इलाकों के अलावा दुनिया के कुछ ऐसे देश भी हैं, जो उचित उत्पादों पर पैसा खर्चने के लिए तैयार हैं। सब-सहारा देश, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीकी महाद्वीप इत्यादि कुछ ऐसे केंद्र हैं, जहां लोग मध्य कीमतों के कंज्यूमर उत्पादों की राह देख रहे हैं। अब जरा एक नजर डालिए त्वरित सेवा देने वाले रेस्त्रां व्यवसाय पर। इनके लिए छोटे का मतलब ही बड़ा है। इसी सिद्धांत पर वे व्यवसाय में छाई मंदी को छांटने का प्रयास कर रहे हैं। इन्होंने समोसों को ऐसा आकार दिया, जो पांच रुपए के लिहाज से मुफीद हो। इसी तरह पिज्जा, कचौरी, सैंडविच, बर्गर को भी दस रुपए के खांचे में फिट करने वाला आकार दिया गया। भले ही इनका आकार छोटा हो, लेकिन लोगों की तेज भूख शांत करने में यह अब भी सफल हैं। इसी तर्ज पर पूरी थाली के सत्तर रुपए कीमत वाले लघु संस्करण की बिक्री में सत्तर फीसदी का इजाफा देखा गया है।
डोमिनोज और मैक्डोनल्ड भी खाद्य उत्पादों के लघु संस्करण पेश कर रहे हैं, जो लोगों की जेब में समा सकें। यद्यपि इन शृंखलाओं में खाने को शेयर करने की प्रवृत्ति कम हुई है, लेकिन वैयक्तिक तौर पर खरीदारों की संख्या बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि इन्होंने तुरंत खाने की इच्छा रखने वालों के लिए कम कीमत में उत्पाद पेश किए हैं। भारत में मैक्डोनल्ड के 257 रेस्त्रां में से दस फीसदी हाईवे पर स्थित हैं। कंपनी के प्रबंधकों ने अपने ब्रांड को इन जगहों पर नए सिरे से स्थापित करने की रणनीति बनाई है। हाईवे पर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली आबादी की शिरकत बढ़ी है। अब इन हाईवे आउटलेट से कंपनी को बीस फीसदी तक आय हो रही है।
डोमिनोज और मैक्डोनल्ड सरीखे ब्रांड के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी छवि को बदलना है। अभी तक इसके खाद्य उत्पादों को कुलीन तबके से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन अब यह ब्रांड इन्हें आमजन तक पहुंचाना चाहते हैं। गौरतलब है कि 87 फीसदी भारतीय सड़क मार्ग से यात्रा करते हंै। ऐसे में इन जैसे ब्रांड के लिए जरूरी हो गया है कि वे त्वरित खाद्य पदार्थ देने वाले उत्पाद के तौर पर सड़क किनारे अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएं। इससे ही मध्य वर्ग कहीं आसानी के साथ इनसे जुड़ाव स्थापित कर पाएगा। इसी रणनीति पर देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे वैश्विक ब्रांड भी अमल कर रहे हैं। कॉफी वल्र्ड, पिज्जा कॉर्नर, क्रीम एंड फज ने इस रणनीति पर अमल करते हुए ही अपनी बिक्री में 15 फीसदी का इजाफा किया है। यानी आकार में छोटा और कीमत में सर्वसुलभ उत्पाद लोगों तक तेजी से पहुंच बना रहा है।
महंगाई के कारण लोगों ने खरीदारी का विचार त्याग दिया है या उचित समय का इंतजार कर रहे हैं। इससे खासकर शहरों में उत्पादों की बिक्री प्रभावित हुई है। वास्तव में इस समस्या का समाधान हमारे देश के ग्रामीण इलाकों या शहरों में तब्दील होते कस्बों या गांवों में निहित है। इनकी संख्या देशभर में 5000 के लगभग है। यहां के लोग बड़े शहरों में खरीदारी के लिए आते हैं। इसे देखते हुए पैराशूट ब्रांड तेल बनाने वाली मैरिको लिमिटेड की सीईओ सौगता गुप्ता की बात विचारणीय हो जाती है। उनका मानना है कि उभरते शहरों की आबादी खर्च करने को तैयार है, लेकिन एफएमसीजी उत्पाद बनाने वाली कंपनियां उन तक पहुंच नहीं पा रही हैं। इसे समझते हुए ही कंपनी ने खास रणनीति बनाई है।
भारत के ग्रामीण इलाकों के अलावा दुनिया के कुछ ऐसे देश भी हैं, जो उचित उत्पादों पर पैसा खर्चने के लिए तैयार हैं। सब-सहारा देश, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीकी महाद्वीप इत्यादि कुछ ऐसे केंद्र हैं, जहां लोग मध्य कीमतों के कंज्यूमर उत्पादों की राह देख रहे हैं। अब जरा एक नजर डालिए त्वरित सेवा देने वाले रेस्त्रां व्यवसाय पर। इनके लिए छोटे का मतलब ही बड़ा है। इसी सिद्धांत पर वे व्यवसाय में छाई मंदी को छांटने का प्रयास कर रहे हैं। इन्होंने समोसों को ऐसा आकार दिया, जो पांच रुपए के लिहाज से मुफीद हो। इसी तरह पिज्जा, कचौरी, सैंडविच, बर्गर को भी दस रुपए के खांचे में फिट करने वाला आकार दिया गया। भले ही इनका आकार छोटा हो, लेकिन लोगों की तेज भूख शांत करने में यह अब भी सफल हैं। इसी तर्ज पर पूरी थाली के सत्तर रुपए कीमत वाले लघु संस्करण की बिक्री में सत्तर फीसदी का इजाफा देखा गया है।
डोमिनोज और मैक्डोनल्ड भी खाद्य उत्पादों के लघु संस्करण पेश कर रहे हैं, जो लोगों की जेब में समा सकें। यद्यपि इन शृंखलाओं में खाने को शेयर करने की प्रवृत्ति कम हुई है, लेकिन वैयक्तिक तौर पर खरीदारों की संख्या बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि इन्होंने तुरंत खाने की इच्छा रखने वालों के लिए कम कीमत में उत्पाद पेश किए हैं। भारत में मैक्डोनल्ड के 257 रेस्त्रां में से दस फीसदी हाईवे पर स्थित हैं। कंपनी के प्रबंधकों ने अपने ब्रांड को इन जगहों पर नए सिरे से स्थापित करने की रणनीति बनाई है। हाईवे पर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली आबादी की शिरकत बढ़ी है। अब इन हाईवे आउटलेट से कंपनी को बीस फीसदी तक आय हो रही है।
डोमिनोज और मैक्डोनल्ड सरीखे ब्रांड के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी छवि को बदलना है। अभी तक इसके खाद्य उत्पादों को कुलीन तबके से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन अब यह ब्रांड इन्हें आमजन तक पहुंचाना चाहते हैं। गौरतलब है कि 87 फीसदी भारतीय सड़क मार्ग से यात्रा करते हंै। ऐसे में इन जैसे ब्रांड के लिए जरूरी हो गया है कि वे त्वरित खाद्य पदार्थ देने वाले उत्पाद के तौर पर सड़क किनारे अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएं। इससे ही मध्य वर्ग कहीं आसानी के साथ इनसे जुड़ाव स्थापित कर पाएगा। इसी रणनीति पर देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे वैश्विक ब्रांड भी अमल कर रहे हैं। कॉफी वल्र्ड, पिज्जा कॉर्नर, क्रीम एंड फज ने इस रणनीति पर अमल करते हुए ही अपनी बिक्री में 15 फीसदी का इजाफा किया है। यानी आकार में छोटा और कीमत में सर्वसुलभ उत्पाद लोगों तक तेजी से पहुंच बना रहा है।
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