'No candle looses its light while lighting up another candle'So Never stop to helping Peoples in your life.

Post Top Ad

https://2.bp.blogspot.com/-dN9Drvus_i0/XJXz9DsZ8dI/AAAAAAAAP3Q/UQ9BfKgC_FcbnNNrfWxVJ-D4HqHTHpUAgCLcBGAs/s1600/banner-twitter.jpg

Jun 14, 2014

=> सर्कस के शेर और पार्लियामेंट

        दफा दिल्‍ली में सर्कस के दो शेर छूट कर शहर में भाग गये। भागे तो दोनों साथ-साथ पर रास्‍ते में दोनों अगल-अलग हो गये। दिल्‍ली जैसे मायावी शहर में मनुष्‍य खो जाये ये तो बेचारे जानवर थे। सात दिनों तक भटकते रहे। एक शेर तो बहुत भूखा था। आंखों में उसके प्राण आये हुए थे। एक नाले कि पुलिया के नीचे किसी तरह से छुप-छुपा कर उसने दिन काटे। खाने को वहां कुछ नहीं था। परेशान और लाचार उस शेर को सर्कस की बहुत याद आ रही थी। की चलो कैद ही सही समय पर खाने को कुछ मिल ही जाता था। अब यहां किसी से पूछ कर दिल्‍ली चिडिया घर में ही चला जाये तो जान बचे। अचानक सातवें दिन उसका वह बिछुड़ा
साथी आ गया। उसे देख कर उसे कुछ राहत हुई,पर उसे देख कर भरोसा नहीं आया की वह तो बहुत हृष्ट पुष्ट है। और उसके चेहरे पर खुशी है। बहुत गड़ा भी खूब था, पहले शेर से तो चला ही नहीं जा रहा था। किसी तरह अपनी जान बचाये हुआ था।
       पहले ने दूसरे से पूछा यार तू कहां चला गया था। मेरे दिन तो बहुत मुसीबत में गूजरें न जाने किस घड़ी में मैंने तेरी बात मान कर सर्कस से भागने की योजना बनाई। मैं तो बहुत पछता रहा हूं। कई बार मैने वहां जाने की कोशिश भी की पर रास्‍ते का पता नहीं चला। किसी से पूछ भी नहीं सकता। हम तो यहां दोस्‍त पानी को भी तरस गये। तुम्‍हारे चेहरे पर तो बड़ी । कहां पर दाव चलाया। कहां छिपे रहे इतने दिन?
दूसरे शेर ने कहां—‘’मैं तो पार्लियामेंट हाउस में छिपा था।‘’
पहले ने कहां—बड़ी ही खतरनाक जगह चुनी तुमने,वहां पर तो इतनी सुरक्षा है , पुलिस है, मीडिया वाले है। तुम गये कैसे, क्‍या तुम्‍हें जरा भी डर नहीं लगा। बहुत बहादूर हो यार तुम तो। गजब का साहस है तुम्‍हारी।‘’
दूसरे ने कहा—यार वहां सब दिखावा है, कोई किसी को नहीं चेक करता। तू जानता ही है। भारत की सुरक्षा व्‍यवस्‍था। जब भी कोई हादसा होता है तो दो चार दिन के लिए…फिर टाये-टाये फीस। तूने पढ़ा नहीं अभी तो कुछ साल पहले पाकिस्‍तानी आतंकवादियों ने उस पर हमला भी कर दिया था। तू नाहक डरता है। मेरे साथ चल। मैं तो वहां रोज मिनिस्‍टर को प्राप्‍त कर लेता था। और पूरा दिन पेड़ की छाव में मजे से सोता था। आज तो तेरी याद आयी। की चलो देखू तू कहा हे।
पहले ने कहा—यह तो बहुत डेंजर काम है। ना भाई यह सुन कर तो मेरे पैर कांप रहे है। फंस जायेंगे। चलो किसी तरह से अपने सर्कस ही वापस लोट चलते है।‘’
दूसरे ने कहां—यार तू चल कर तो देख। कितना मजा आयेगा। वहां एम. पी मिनिस्टरों का लजीज मांस तू सब स्वाद भूल जायेगा। जब भी वहाँ से कोई मिनिस्‍टर नदारद होता है। एवरी वन इज़ कंपलीटली सैटिस्‍फाइड।‘’ कोई झंझट नहीं होती है। नौ वन लिसिन्‍स हिम। काई कभी भी अनुभव नहीं करता। वह जगह इतनी बढ़िया है कि वहां जितने लोग है किसी को भी प्राप्‍त कर जाओ। बाकी लोग प्रसन्‍न होते है। तुम भी वहीं चले चलो। वहां आपने दो क्‍या पूरे सर्कस के सब शेर भी आ जाये तो भी भोजन की कोई कमी नहीं होगी। साल भर का तो भोजन बड़े मौज से है। क्‍योंकि जैसे ही जगह खाली होगी। भोजन खुद ही पार्लियामेंट में आने को बेताब इंतजार कर रहा होगा। पूरे मुल्क से भोजन आता ही रहेगा। हमारे कम करने से कम हो ही नहीं सकता। वहां प्राविधान ही ऐसा किया हुआ है। अब तू समझ भोजन खुद ही अपने पैसे खर्च कर बहा आने को तैयार है। ऐसा तूने कभी सूना है। और कितनों की तो वहां फोटो लगी है। अब तू चल…..
                                                              पर बेचारा कमजोर शेर हिम्‍मत नहीं कर सका वहां जाने की….
                                                                                                                                                  (osho)

No comments:

Post Top Ad

Your Ad Spot

Pages