- रूपाश्री शर्मा,गुमला झारखण्ड
मैं ही दुर्गा, मैं ही चंडी, मैं ही बनी कपाली भी
मैं मन को वश में कर लेती, बन शराब कि प्याली भी
मैं फूलों कि डाली भी और, मैं ही तेज़ कटारी हूँ
' मैं नारी हूँ '.................
सृष्टि को पल्लू में बांधे, घूम रही मैं नारी हूँ !
मन के आसमानों पर तारे, मेरी चूनर से ही टंगे
मैं ही अमावस काली भी, मैं ही पूनम उजियारी हूँ !
मैं ही हकीकत मैं ही फ़साना, झूठ सांच सब मुझमें भरे
मैं ही कवियों कि भी कल्पना, मैं ही स्वपन सकारी हूँ !
मेरी ही जागीर जहाँ हो, मैं मजदूरी वहाँ करूँ
मैं ही हुकूमत घर की हूँ, और मैं ही पहरेदारी हूँ !
मुझमें ब्रम्हा विष्णु शिव हैं, मैं कण कण से पूजित भी
क्यूंकि प्रसव से जन्म भी दे दूँ, और मैं ही संहारी हूँ !
मैं मर्यादा बिस्तर की भी, मैं ही कन्या पूजन में
मैं ही अंकशायिनी भी, मैं ही पूजन अधिकारी हूँ !
मैं वीरों की मयान में, शमशीर बनी पीती भी लहू
और कमाल है ये मेरा, मैं रात पड़े श्रृंगारी हूँ !
जान लुटा कर जिम्मेदारी, पूरी करनी हो तो करूँ
जितनी बड़ी ताकत हूँ पुरुष की, उतनी बड़ी लाचारी हूँ !
मैं ही खट्टा-खारा-कड़वा, मैं जीवन का हर अनुभव
मैं ही मीठी स्वाद की रानी, मैं तीखी तर्रारी हूँ !
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