सूचना अधिकार की उड़ रही धज्जियां
कैसे रूकेगा भ्रष्टाचार जब पुलिस करेगी अत्याचार, अधिकारी होगा उपेक्षा का शिकार
मेरठ। पुलिस विभाग को वैसे तो अपनी दबंगई से आम जनता को पराजित करने में ‘सिद्ध प्राप्त’ है मगर अब ऐसा लगता है कि बिजनौर के सीएमओ की तरह मेरठ की पुलिस भी अपने हाकिम के आदेशों का बॉयकाट करती है। यही नहीं अपने झूठे अहम को दिखाने के लिये सरकार द्वारा स्थापित नियमों की भी धज्जियां उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत वैसे तो पुलिसकर्मी जानकारी देने से कतराते हैं मगर जिले के आलाकमान और प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेशों को भी अगर ताक पर रख दें तो इसे आप क्या कहेंगें?
आरटीआई के तहत मेरठ के शास्त्रीनगर निवासी पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ने डीआईजी को दिये गये प्रार्थनापत्र की प्रमाणित प्रतिलिप एवं उसपर अभी तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा। डीआईजी ने उक्त प्रार्थनपत्र को एसएसपी को स्थानांतरित कर सूचना देने का आदेश देते हुये पत्र भेजा, एसएसपी कार्यालय को सूचना देने हेतु प्रेषित पत्र का जवाब एक माह बीत जाने के पश्चात भी नहीं आया तो पत्रकार ने पुन: कप्तान(प्रथम अपीलीय अधिकारी) को पत्र लिख सूचना न देने वाले पुलिसकर्मियों पर नियमसंगत कार्रवाई कर जवाब देने हेतु आदेश पारित करने की प्रार्थना की गई। इसके बाद एसएसपी ने सुनवाई करते हुये आदेश एसपी क्राइम को आदेश दिया की सूचनाधारक से सूचना एकत्र कर जवाब को फौरन प्रेषित करें। मगर लगभग दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी एसपी साहब के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा। इसे एसपी क्राइम की बेफिक्री कहें, लापरवाही कहें या फिर अधिकारी के आदेशों की अवहेलना करने का तरीका?
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