उम्मीदवारों के फेसबुक पोस्ट को अप्रत्याशित तौर पर पसंद (लाइक) किया जाना भारी पड़ सकता है। चुनाव आयोग ने इस माध्यम पर अपनी निगाहें तिरछी कर दी है। आयोग की एक टीम बिहार विधानसभा चुनाव में फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों की निगरानी के लिए तैयार है। जो सिर्फ राजनीतिक ऑनलाइन विज्ञापनों पर ही नहीं, लाइक पर भी नजर रखेगी।
निर्वाचन आयोग को दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद तमाम शिकायतें मिली थीं कि सोशल साइटों पर खुद को सबसे बेहतर साबित करने में उम्मीदवारों ने भारी खर्च किया है। यह खर्च सोशल मीडिया में पोस्ट को लाइक करने पर किया गया था।
आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक इसके बाद तकनीकी दल को इस संबंध में जानकारी हासिल करने को कहा गया। इससे पहले सभी राष्ट्रीय और राज्य के राजनीतिक दलों को आयोग ने अक्तूबर, 2013 में वेबसाइट प्रचार के संबंध में निर्देश जारी किए थे।
आयोग ने निर्देशों में फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, विकिपीडिया और मोबाइल एप से किए जाने वाले प्रचार के बारे में प्रत्याशियों की ओर से सूचित किए जाने को कहा गया था। जबकि अब आयोग की नजर इस पर भी रहेगी कि सोशल साइट पर किए गए पोस्ट को अप्रत्याशित तौर पर पसंद तो नहीं किया जा रहा है।
फेसबुक बेचता है लाइक
दरअसल फेसबुक की ओर से लाइक की बिक्री होती है, जो दिल्ली के चुनावी दौर में प्रति लाइक की खरीद छह रुपये तक गई थी। हालांकि तब आयोग को इसका सटीक अंदाजा नहीं था कि प्रचार के इस खेल पर कैसे पकड़ बनाई जाए। सूत्रों के मुताबिक तकनीकी टीम बिहार चुनाव के बाद इस बारे में अपनी रिपोर्ट देगी।
बढ़ जाती है लाइक की कीमत
कंपनियों के प्रचार पर बड़ी तादाद में लाइक करने की जुगत को नेता चुनाव में अपनाते हैं। बीते तीन साल में सोशल साइटों पर यह कारगुजारी बढ़ी है। हालांकि इस मामले में सबसे आगे फेसबुक ही है। आमतौर पर प्रति लाइक 70 पैसे कीमत की रहती है पर चुनाव के दौरान यह पांच से छह रुपये तक जाती है।
कैसे मिलता है फायदा
चुनावी माहौल में उम्मीदवार की ओर से पोस्ट डालने पर एक सीमा तक लोगों का लाइक करना आम बात है। लेकिन यह अप्रत्याशित तब है, जबकि आंकड़ा हजारों और फिर लाखों में पहुंच जाए। तब संभवाना प्रबल है कि फेसबुक से लाइक खरीदी गई है। वहीं सोशल मीडिया पर हाजिरी लगाने वाले यह समझते हैं कि बड़ी तादाद में लोग प्रत्याशी को पसंद कर रहे हैं।
No comments:
Post a Comment