- A Talk with Jain Sadwi
महापर्व पर बहस छिड़ गई कि मांस विक्री की पाबंदी नहीं होनी चाहिये। टीवी चैनलों पर राष्ट्रीय चैनलों में लगातार खबरें चलने कि, ‘रोजी-राटी का सवाल है’ और ‘कोर्ट का फैसला बाध्य नहीं’ एवं ‘जैन समाज को अलग से बढ़ावा नहीं देना चाहिये’ आदि आदि नाना प्रकार के तर्क दिये गये। एनसीपी ने महाराष्ट्र में तो छोटे-छोटे बेजुबान जीवों को लेकर क्रूरमापूर्व प्रदर्शन भी किया। क्या ये सब महज वोटों के लिये है? क्या अब राष्ट्रीयता का कोई महत्त्व नहीं है?
राष्ट्र का निर्माण किस बात पर निर्भर करता है? धर्म, संस्कृति और यहां के रहने वालों लोगों से। भारत के धर्म एवं संस्कृत, सभ्यता में यह बात शामिल है कि मांस बेचकर रोजी-रोटी कमाया जाये। इस प्रकार देखा जाये तो चोरी को जुल्म नहीं कह सकते क्योंकि वह हिंसा से छोटा पाप है। और यह भी सत्य है कि वह चोरों की रोजी-रोटी है। जितने तरह के हिंसात्मक कार्य हैं चाहे वह नक्सलवाद हो, आतंकवाद हो सभी कार्यों में लोग रोजी-रोटी से जुटे हैं तो क्या उन्हें ऐसा करने की संवैधानिक छूट दी जानी चाहिये?
महानुभाव जब किसी का कत्ल कर दिया जाये तो वह कभी दुआ नहीं देता, वह कभी खुश नहीं होता, उसकी आत्मा छटपटायेगी, आह निकलेगी। यदि निर्बलों को दबाकर, मारकर खाओगे तो उनके आत्मा से निकलने वाली आह से तुम आहत होगे।
‘हाय लीजिये दुःखिया की, तो फाट कलेजा जाये’ अपनी करनी भुगतनी पड़ेगी। निबंलों को मत सताओ। बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, डेंगू आदि सब इसी का उदाहरण है। जब भी हिंसा का शंखनाद होगा तो धरती कांप उठेगी, प्रलय की सुनामी आयेगी। वोटों की राजनीति ने बनारस में मूर्ति विसर्जन करने को आमादा साधु-संतो पर लाठी चार्ज करवा दिया। कत्लखानों एवं फैक्टि्रयों का मैला और गंदगी गंगा में लगातार प्रवाहित हो रही है इस ओर किसी ने तनिक भी ध्यान नहीं दिया।
सोचना आपको है ‘ऊंची पढ़ाई और अंधी कमाई’ से क्या राष्ट्र का विकास होगा? धर्म-संस्कार विहीन पढ़ाई और छल-कपट की कमाई से समाज में विषैली गंध जन्म लेगी जिसकी बदबू से पूरे समाज के जीवों कों दो-चार होना पड़ेगा। मेरा मानना है कि दया-करूणा और उपकारों के धार्मिक संस्कार अवश्य पढ़ना होगा तभी राष्ट्र का स्वस्थ्य विकास होगा। राष्ट्र का विकास होगा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और शील से। ‘झूठ और कत्ल पर आधारित रोजी रोटी’ और राजनीतिक रोटी खाकर कभी भी राष्ट्र का विकास नहीं होगा।
अदालतों के फैसलों का विरोध करना हम सभी के हित की बात नहीं है फिर भी एक बात जरूर कौंधती है कि क्या आज के अधिवक्तागण इतने धर्मज्ञ हैं कि वे अदालत के सम्मुख किसी भी धर्म का पक्ष मजबूती से रख सकें। क्या उन्हें भगवान राम, महावीर व ऋषि-मुनियों का मर्म मालूम है जो वे इतनी कुशलता से जज के सम्मुख पक्ष रखने में कामयाब होते हैं? या फिर अदालत में बैठे न्यायाधीश महोदय धर्म के सिद्धातों के पीछे का सत्य समझकर निर्णय दे पाने में सक्षम होंगे?
सीधी सी बात है कि, ‘एक साधू भूखा-प्यासा रहकर, सर्दी गर्मी का एहसास कर के भी खुश रहता है जबकि एक चोर सब सुखों को भोगकर भी डरा सहमा सा रहता है।’ आखिर क्यों? हत्या किसी भी जीव की हो हत्या तो हत्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि ‘गुड आतंकवाद- बैड आतंकवाद’ इसका क्या मतलब है आतंकी तो आतंकी हैं बस, निजका काम है मानवों की हत्या करना, देश को तबाह करना है। इसमें गुड और बैड की बात कहां है? शिव-सेना रूपी संगठन का कहना है कि जैन समाज को इतना बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? जब तक जैन समाज है, दिगम्बरत्व और दिगम्बर है तक तक ही मानवता है। जब तक इस धरा पर संघ सहित यथाजात रूप (जैसे जन्में उसी रूप) में साधु विचरण करते रहेंगे तब तक प्रेम, अहिंसा, मानवता, करूणा, दया, का अलाव जलता रहेगा अन्यथा ‘हिंसा-तांडव’ देखने को तैयार रहें। अपनी विरासत को नष्ट करने के लिये मानव-मानव का खून पियेगा। कहीं आज के सिंहों के सिंहासन पर गीदड़ तो विराजमान नहीं हो गये हैं। अमर तो कोई नहीं है मगर हम अपने कर्मों से पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व को एक स्वस्थ्य और सुलभ मार्ग दिखा सकते हैं जिसके बल पर मानवा का कल्याण हो सकेगा?
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