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Feb 3, 2016

=> एकजुटता से उत्साहित हुये ‘पत्रकार’

सियासत संवाददाता
मेरठ। पिछले दिनों हुई तमाम खिलाफ गतिविधियों से खफा पत्रकारों ने एकजुट होकर अपने शक्ति का एहसास करा दिया। पुलिस एवं प्रशासन के दोहरे चरित्र से उपजे रोष ने आज मेरठ की धरती को एक बार फिर क्रान्तिधरा होने का प्रबल एहसास करा दिया। सर्किट हाउस में पहुंचे तमाम पत्रकार बन्धुओं में पहली बार देखने को मिला कि वे खुद को किसी बैनर से नहीं बल्कि ‘पत्रकार-बिरादरी’ से होने का हवाला दे रहे थे। मेडिकल कॉलेज में होने वाली पत्रकार विरोधी गतिविधि हो या फिर शासन-प्रशासन का पत्रकारों के प्रति दोहरा मापदण्ड, हर बार पत्रकारों की तरफ सवाल उठाने वालों का एक बड़ा तबका दिखाई पड़ता है।
सर्किट हाउस में दोपहर 12 बजे सभी पत्रकारों ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करने की बात दृढ़ता के साथ व्यक्त की। कार्यक्रम की अध्यक्षा संतराम पाण्डे एवं कुशल संचालन अरविन्द शुक्ल ने किया। इस दौरान यह बात सामने आयी कि पत्रकार पहले अपने कार्यों की ‘लक्ष्मण-रेखा’ बनाये और खुद के अन्दर की कमियों को दूर करे। अपने कलम को ‘धार’ प्रदान करे। निष्पक्षता का ख्याल रखे। शासन-प्रशासन के चाटुकार पत्रकारों का बहिष्कार करे। अपनी बात कहने का तरीका समझे और कागजी कार्रवाई से भी मजबूती के साथ लड़ाई लड़े। संचालन करते हुये पत्रकार अरविन्द शुक्ल ने कहा कि बार-बार की घटनाओं से सबक लेना जरूरी है। ‘बुद्धिजीवियों को एकमंच पर लाना’ और ‘मेंढ़क को तौलना’ दोनो कह बहुत कठिन कार्य है। दोनो प्रक्रियाओं में कभी भी कोई भी कूदकर फरार हो सकता है।
डॉक्टरों पर चल रहे मुकदमों में हो कार्यवाहीः
सभा के दौरा पत्रकारों के वक्तव्य में यह बात साफ हो गई कि अब प्रशासन-पुलिस को किसी भी पुराने मामले में कार्यवाही न करने पर लामबंद होकर समाजहित में विरोध करेंगे और अपनी कलम से जबरदस्त विरोध भी करेंगे। पिछले दिनों मेडिकल में हुई घटनाओं में डॉक्टरों पर लगे मुकदमों में कार्रवाई करने हेतु शासन-प्रशासन को मजबूर किया जायेगा।
प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भेद मिटे
पत्रकारों में हुई खेमेबंदी पर सवाल उठाते हुये रवीन्द्र राणा ने कहा कि, ‘प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विभेद को समाप्त कर एक दूसरे के साथ मिलने में ही भलाई है, इसके अलावा अपनी व्यक्तिगत लड़ाई को स्वयं लड़ें और संस्थान या संगठन को उसके लपेटे में न लें।’ समाज की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकार अपनी लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं। आखिर कब तक हम असहाय होकर एक दूसरे को छोटे-बड़े में बांटकर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ते रहेंगे। संगठन बनाया जाये, खामियों की चर्चा कम करें उनसे सबक ज्यादा लें। अपना दायरा बढ़ायें और एकजुट हो कर समाज को संदेश देने की कोशिश करें। अपना रास्ता खुद बनायें। हो सकता है कि संस्थान में नौकरी करने के दौरान आपको इजाजत न मिले लेकिन आप अपने बचे हुये समय में पत्रकार-हित की लड़ाई लड़ें और एजेंडा बनाकर कार्य करें।
 बड़े और छोटे का विभेद समाप्त हो

चर्चा के दौरान एक बेहद अहम बात सामने आई कि छोटे और बड़े पत्रकारों में ‘विभेद करने वालों’ को चिह्नित किया जाये, उनकी नजरों से ‘अभिमान का पर्त’ हटाया जाये। अपनी मानसिकता को साफ रखो, छोटे-बड़े में विभेद करना पत्रकार बिरादरी के लिये किसी विष से कम नहीं है।
हर घटना पर रखें पैनी नजर
किसी भी घटना पर अपनी नजरें गड़ाये रखो और उसपर हो रही हर गतिविधि को तल्लीनता से अखबारों में लिखो, टीवी चैनलों पर प्रसारित करो। समाज को हर-छड़ आगाह करो। ‘सोशल मीडिया’ वर्तमान दौर के सबसे ‘प्रमुख हथियारों’ में से है, इस प्लेटफार्म पर एक मुहिम छेड़ी जा सकती है। समाज की बुराईयों पर, विभाग की कमियों पर नजर रखें, मौका मिलते ही गहरी चोट के साथ उसे ध्वस्त करने का प्रयास करें। इस प्रकार से शासन-प्रशासन ही नहीं सरकार की भी नींदे टूट जायेगी।
सभा का हो आयोजन
बुद्धिजीवी पत्रकारों में एक बात और तय हुई कि मासिक सभा जरूर रखा जाये। इससे नये पत्रकारों को वरिष्ठों से परिचित होने का भरपूर मौका मिलने लगेगा। तथा छोड़-बड़े का विभेद भी खत्म हो जायेगा।
आपसी फूट से कोई भला करने को भी तैयार नहीं  
संचालक अरविन्द शुक्ल ने कहा कि हमारी वर्तमान फूट से कोई भला करने को भी तैयार नहीं है। प्रेस क्लब में पुताई कराने का हवाला देते हुये बताया कि, ‘जब हमने सूचनाधिकारी से इस स बंध में बात की तो उन्होंनें साफ शब्दों में कहा कि पत्रकारों के झमेले में हमें नहीं पनड़ना है।’
‘जिम्मेदारी से काम किया जाये, कमेटी बने और उसमें जिम्मेदारों को पद पर बैठाया जाये। पुराने जमा किये गये फार्मों को इन्हीं नये व्यक्तियों को सौंप दिया जाये।’
शासन के गुप्तचर को डांटकर भगाया
पत्रकारों की सभा में पहुंचे एक बाहरी व्यक्ति को देखकर पत्रकारों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। टीशर्ट और जीन्स पैंट में सभा में बैठकर बातों को गौर से सुनने वाले इस व्यक्ति पर शक होते ही सभी पत्रकार उसपर खफा हो गये और से वहां से डांटकर भगा दिया। माना जा रहा है कि यह व्यक्ति शासन या प्रशासन की तरफ से पत्रकारों की सभा हो रही बातों को सुनने आया था।

‘आपसी बुराइयों को भुलाकर, एक बिरादरी का दामन थाम लें, भेदभाव न करें।’ -चीकू कौशिक, हिन्दुस्तान
‘२५ साल पहले जब सूचना प्रौद्योगिकी का इतना वर्चस्व नहीं था तब भी सारे पत्रकार एक थे, आज के इस र तार भरे समय में भी एकजुटता का संदेश न दे पाना बहुत दुःखद है।’
-राशिद, इंडिया क्राइम
संगठन विचारों की एकता का है। रस्सी से बांधकर नहीं चलाया जा सकता। हम सभी को बिना बुलाये ही स्वतः सभा में उपस्थित होना चाहिये।’ -दिनेंश चंद्रा, समाचार बन्धु संस्था
‘देश के चौथे स्तंभ पर हाबी हो रहे अधिकारी लाबी को सबक सिखाने का एकमात्र रास्ता है छोटे-बड़े का विभेद समाप्त करना। शपथ लें कि आप पहले हिन्दुस्तानी हैं फिर पत्रकार हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं।’ -शैलेन्द्र अग्रवाल, समाचार प्रकरण
‘संख्याबल से ही बनेगी बात, हाल-फिलहाल की कई घटनाओं से पता चल गया है कि अधिकारियों के लिये छोटे-बड़े पत्रकार का कोई मतलब नहीं है, इसलिये अज्ञानी पत्रकारों को सबक सीख लेना चाहिये और एकजुट होना चाहिये।’ -ज्ञान प्रकाश, जनवाणी
‘संगठन परिवार की तरह है, अच्छे-बुरे के संयोग से ही परिवार का संचालन होता है। छोटे सीखें और बड़े मार्गदर्शन प्रशस्त करें। एकजुटता अपनेआप आयेगी। अपने परिवार के सदस्यों की गलतियों को घर में ही सुलझायें, बाहर न कहें।’ -नाहिद फात्मा, सियासत...दूर तक
‘जाति-धर्म से उपर उठकर सिर्फ पत्रकार बनें, एकजुट नहीं हुये तो अगली बारी में खुद भी चपेट में आने को तैयार रहें।’ -रिजवान खान, जनमाध्यम
‘पिछले दिनों संगठन के नाम पर पैसा जमा किया गया, आजतक हिसाब नहीं है। इसलिये किसी संगठन को बनायें तो इस ओर भी ध्यान देना जरूरी है कि किसी का नुकसान न हो।’ -सुभाष, अमर उजाला
‘पिछले कई दिनों से पेशा बदलने को सोच रहा हूं क्योंकि असुरक्षा को देखते हुये अब मन गवाही नहीं देता। हमें परिवार की तरह मिलकर कार्य करना चाहिये।’ -मुकेश गुप्ता, बिजनौर टाइम्स
‘अपना स्तर तय करों, मानक बनाओं, पत्रकार बनें। मन से संगठित होकर कार्य करें।’ -उस्मान चौधरी, टाइम्स  नाऊ
‘स्वयं को सुधारो, अपनी लक्ष्मण रेखा तय करो। उससे बाहर न जाओ वरना कोई रावण हरण तो करेगा ही।’
-राजेन्द्र सिंह चौहान, सियासत...दूर तक
इसके अतिरिक्त पूजा रावत, शाहिन परवीन, अनुज मित्तल, सुधीर चौहान, उरूज आलम, नईम सैफी, धर्मेद्र कुमार, राहुल राणा, नरेन्द्र उपाध्याय, परेवज त्यागी, त्रिनाथ मिश्र आदि ने अपने वक्तव्यों में एकजुट होकर कार्य करने पर सहमति प्रदान की।

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