'No candle looses its light while lighting up another candle'So Never stop to helping Peoples in your life.

Post Top Ad

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitYaYpTPVqSRjkHdQQ30vpKI4Tkb2uhaPPpRa2iz3yqOvFNx0PyfRqYxXi_SO2XK0GgZ9EjuSlEcmn4KZBXtuVL_TuVL0Wa8z7eEogoam3byD0li-y-Bwvn9o2NuesTPgZ_jBFWD2k0t4/s1600/banner-twitter.jpg

Oct 30, 2019

विदेही गुरु देहधारी गुरुओ को निर्देशित करते हैं न की शिष्यों को

तीन कोटि के सिखाने बाले----
पहली कोटि विद्यार्थियों का शिक्षक, दूसरी कोटि शिष्यों का गुरु ,और फिर तीसरी कोटि गुरूओं का गुरु होता है। पतंजलि कहते हैं -जब गुरु भगवान हो जाता है और भगबान होने का अर्थ होता है - समय के बाहर होना जिसके लिए समय अस्तित्व नही रखता। जो समयातीत को जान चूका है ।शाश्वत अनन्ता में डूब गया है।जो केवल रूपान्तरित ही नही हुआ, जो केवल भगबत्ता से ओतप्रोत ही नही हुआ, जो मात्र परम जाग्रत ही नही हुआ वल्कि जो समय के बाहर जा चूका है ।वह गुरूओं का गुरु होता है,अब वह भगवान हो जाता है।
वह गुरुओ का गुरु करता क्या होगा, वह अवस्था केवल तभी आती है , जब गुरु देह छोड़ता है, उसके पहले कभी नही ।देह में तूम जाग्रत हो सकते हो। देह में रहते हुए तुम जान सकते हो कि समय नही है। लेकिन शरीर के पास जैविक घड़ी है ।वह भूख अनुभव करता है। प्यास अनुभव करता है। तृप्ति के कुछ समय बाद फिर भूख अनुभव करता है। थकान,नींद,रोग, स्वास्थ्य आदि समय के साथ बंधे होते हैं। रात में देह को निद्रा में चले जाना होता है। सुबह उसे जागना होता है। देह की जैविक घडी होती है। अतः तीसरे प्रकार का गुरु केवल तभी घटता है। जब गुरु सदा के लिए देह छोड़ देता है। जब उसे फिर से देह में नही लौटना होता।बुद्ध के पास दो शब्द हैं। पहला है निर्वाण,सम्बोधि। जब बुद्ध जागरण को उपलब्ध हुए तो भी देह में बने रहे यह थी सम्बोधि, निर्वाण। फिर चालीस बर्ष के पश्चात उन्होंने देह छोड़ दी।इसे बे कहते हैं महापरिनिर्वाण ।फिर वे हो गए गुरूओं के गुरु और तब से बे बने रहें हैं गुरूओं के गुरु।

प्रत्येक गुरु जब वह स्थायी रूप से देह छोड़ देता है जब उसे फिर नही लौटना  होता, तब वह गुरुओ का गुरु हो जाता है। मोहम्मद, जीसस, महावीर, बुद्ध,पतंजलि --ये सभी गुरुओ के गुरु हुए और निरंतर रूप से देह धारी गुरुओ को निर्देशित करते आ रहें हैं न कि शिष्यों को।
जब कोई बुद्ध का अनुसरण करते हुए सम्बोधि को उपलब्ध होता है तो तुरन्त एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। अकस्मात वह बुद्ध के साथ जुड़ जाता है। बुद्ध जो अब देह में नही रहे ।कालातीत हो गए लेकिन फिर भी मौजूद हैं,उन बुद्ध के साथ जुड़ जाता है,जो समग्र समष्टि के साथ एक हो चुके हैं लेकिन जो अब भी हैं।

ओशो--पतंजलि योग सूत्र --15

No comments:

Post Top Ad

Your Ad Spot

Pages